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व्रत कथा कोष
छोटा भाई चन्द्रकेतु युद्ध में मरण को प्राप्त होगा। तब अर्ककेत राज्य सम्भालेगा और जिनदीक्षा लेकर २२वें स्वर्ग में देव होगा, वहां से वह एक जन्म लेकर मोक्ष जायेगा। इसकी माता रानी विजयवल्लभा स्वर्ग में देव होगी और आगे मोक्ष में जायेगी । तब राजा अपने घर गया, लड़की ने वह व्रत किया, अन्त में वह मोक्ष जायेगी।
श्र तज्ञान व्रत मतिज्ञान के भेद २८ । उसके उपवास २८ द्वादशी अंग-के पहले ११ अंग के ११ उपवास, १२वे अंग में दृष्टिवाद अंग के पांच । उसमें परिकर्म के भेद २ उसके उपवास २। सूत्र एक विषय है उसकी पद संख्या २८ है उसके सम्बंधी २८ उपवास दृष्टिवाद पांचवां भेद चूलिकाउसके ५ उपवास अवधिज्ञान के भेद ६ उसके उपवास ६ मनःपर्यय ज्ञान के दो भेद । उपवास २ केवलज्ञान का एक इस प्रकार ये १५८ होते हैं । ऐसी यह विधि है।
दूसरी विधि :-यह व्रत १२ वर्ष और ८ महिने अर्थात् १५२ महिनों में पूर्ण होते हैं । उसके कुल उपवास १४८ हैं । १६ प्रतिपदा के १६, तीन तृतीया के ३, चार चतुर्थी के ४ इस क्रम से जो तिथि है उस तिथि के उतने उपवास करना। इस प्रकार पूर्णिमा के १५ व अमावस्या के भी उसी क्रम से १५ उपवास करना व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करना।
श्रुत स्कंध व्रत भाद्रपद महिने में यह व्रत करते हैं इस महिने जिनालय में श्रुत स्कंध मंडल निकालकर श्र तस्कंध पूजन विधान करना एक महिने में १६ उपवास प्रोषध पूर्वक करे ऐसा करने से यह व्रत उत्कृष्ट होता है । पारणे के दिन या तो निरस करे या दो रस छोड़कर ले । इस प्रकार यह व्रत १२ वर्ष करना चाहिये । व्रत पूर्ण होते ही उद्यापन करना चाहिये । कितने ही १२ वर्ष करते हैं तो कितने हो पांच वर्ष करते हैं । उद्यापन में बारह-बारह उपकरण घंटा झालर पूजा के बर्तन छत्र चमर वगैरह मन्दिर में दान देना चाहिए । बारह शास्त्र मन्दिर में रखना व्रत के दिन
ॐ ह्रीं श्री जिनमुखोद स्यादादमय गभित द्वादशाङ्ग श्रु तज्ञानेभ्यो नमः।
इस मन्त्र का जाप त्रिकाल करना चाहिए । बारह भावना का चिंतन करना चाहिए।