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________________ व्रत कथा कोष [ ७११ इस प्रकार यह व्रत महिने की दो तिथि को कर ऐसी २४ तिथि पूर्ण होने पर कार्तिक अष्टान्हिका में उद्यापन कर पंचपमेष्ठी विधान करके महाभिषेक करे । चतुःविधि संघ को दान दे । ५ दम्पतियों को भोजन करावे और उनका सत्कार करे। कथा यह व्रत पहले सीतादेवी, मंदोदरी, तारादेवी, द्रोपदी, रुकमणि, अंजनादेवो, नीलावती आदि ने किया था। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से उनको सब अभ्युदय सुख की प्राप्ति हुई । ऐसा इस व्रत का महत्व है । अथ हिसानंद निवारण व्रत कथा विधि :-पहले के समान करना चाहिये अन्तर सिर्फ इतना है कि बैशाख शु. ५ के दिन एकाशन कर । ६ के दिन उपवास कर । नवदेवता पूजा, मन्त्र, पाराधना, जाप करे ६ पत्ते मांडे । कथा पूर्ववत । ६ पूजा पूर्ण हो जाने पर कार्तिक अष्टान्हिका में उद्यापन करे । अथ हास्यकर्म निवारण व्रत कथा विधि :-पहले के समान करे । अन्तर सिर्फ इतना है कि चैत्र कृष्णा ४ के दिन एकाशन करे और ५ के दिन उपवास कर । धर्मनाथ तीर्थंकर की पूजा अर्चना मन्त्र जाप आदि करना चाहिये। अथ हरिषेण चक्रवति व्रत कथा व्रत विधिः-माघ शुक्ला ४ के दिन एकाशन करे और ५मी को सुबह शुद्ध होकर कपड़े आदि पहनकर अष्ट द्रव्य लेकर मन्दिर जाये, दर्शन आदि सब करके एक पीठ पर सम्मति (भूतकाल) तीर्थ कर की स्थापना कर पंचामृत अभिषेक करे। पाटे पर १० स्वस्तिक निकालकर उस पर उतने ही पत्त रखे । अष्ट द्रव्य भी रखे । निर्वाण से सम्मतिनाथ तक पूजा करे । जाप :-ॐ ह्रीं अहं सन्मति जिनाय यक्षयक्षि सहिताय नमः स्वाहा । इस मन्त्र का १०८ बार जाप करे । णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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