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________________ ६८८ ] व्रत कथा कोष तारासुन्दरी, पुरोहित, सारा परिवार सुख से रहता था। एक बार उन्होंने तारासागर नामक मुनि से व्रत लिया, उसका यथाविधि पालन किया । सर्व सुख को प्राप्त किया | अनुक्रम से मोक्ष गए । श्रथ सुनय व्रत कथा व्रत विधि :- पहले के समान सब विधि करे । अन्तर सिर्फ इतना है कि ज्येष्ठ कृ० २ के दिन एकाशन करे ३ के दिन उपवास करे । पूजा वगैरह पहले के समान करे । णमोकार मन्त्र की चार माला फेरे, चार दम्पतियों को भोजन करावे वस्त्र आदि दे । कथा पहले सुरेन्द्रपुर नामक नगर में शूरसेन नामक राजा अपनी स्वरूपवति रानी के साथ राज्य करता था । उसका पुत्र महासेन व उसकी पत्नी सत्यवति थी । उसका रत्ननिधि नामक प्रधान व रत्नावली नामक स्त्री थी । उसी प्रकार श्रुतकीर्ति पुरोहित और शारदा उसकी स्त्री थी । कुबेरदत्त राजश्रेष्ठी व उसकी पत्नी धनावली थी । ऐसा राजा का परिवार था । उन सबने अनन्तसेनाचार्य गुरु के पास यह व्रत लिया था जिससे उन्हें अनुक्रम से स्वर्ग सुख मिला । श्रथ सप्तयक्षी व्रत अथवा देवकी व्रत कथा श्रावण शुक्ल ६ को मन्दिर में जाकर भगवान को नमस्कार करे सुपार्श्वनाथ प्रतिमा का व यक्षयक्षि की प्रतिमा का पंचामृताभिषेक करे, वृषभनाथ से लगाकर सुपार्श्वनाथ तीर्थंकर की अलग-अलग पूजा करे, जिनागम और गुरु की पूजा करे, यक्ष यक्षिणी की पूजा करे, क्षेत्रपाल की पूजा करे, सात प्रकार का नैवेद्य बनाकर चढ़ावे । ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रहं सुपार्श्वनाथ तीर्थ कराय नन्दिविजययक्षकालियक्षि सहिताय नमः स्वाहा । इस मन्त्र का १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाय करे, व्रत कथा पढ़े, एक अर्घ्य थाली में लेकर नारियल रखे, उस थाली को हाथ में लेकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल भारती उतारे, अर्ध्य चढ़ावे, उस दिन उपवास करे, ब्रह्मचर्य का पालन करे, दूसरे दिन चतुर्विध संघ को प्राहार आदि देकर स्वयं पारणा करे, इस प्रकार इस व्रत को सात महीने तक उसी तिथि न
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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