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व्रत कथा कोष
श्रु त व गणधर की पूजा करके यक्षयक्षी व ब्रह्मदेव की अर्चना करे। पंचपकवान बनाकर चढ़ायें।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं प्रहं विमलनाथ तीर्थंकराय पातालयक्ष वैरोटोयक्षी सहिताय नमः स्वाहा।
इस मन्त्र से १०८ पुष्प चढ़ायें । णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप करे । इसकी कथा पढ़े । एक पात्र में १३ पान रखकर अष्टद्रव्य व नारियल लेकर महार्य करे । उस दिन उपवास करना । सत्पात्रों को आहारादि देना । दूसरे दिन पूजा व दान करके पारणा करे । तीन दिन ब्रह्मचर्यपूर्वक रहें। इस प्रकार १२ रविवार तक करके फाल्गुन अष्टान्हिका में उद्यापन करे । उस समय विमलनाथ तीर्थंकर विधान करके महाभिषेक करे । चतुःसंघ को चार प्रकार का आहारदान दे ।
__ कथा जम्बूद्वीप में पूर्व विदेहक्षेत्र में सीता नदी के दक्षिण में वत्सकावती देश में पृथ्वी नगर है । वहां जयसेन राजा राज्य करते थे। उनकी जयसेना पट्ट रानी थी। उनके रतिषेण ब धृतिषेण दो पुत्र थे।
एक दिन अाहार निमित्त यशोधर नाम के महामुनीश्वर पाये, जयसेन राजा ने प्रतिग्रहण करके अपने रसोई घर में ले जाकर आहारदान दिया। पश्चात् मुनिवर कुछ देर बैठे और धर्मोपदेश किया। यह सुन राजा ने अपना भवप्रपंच पूछा जिसे मुनिवर ने बताया। यह सुनकर राजा को संतोष हुया । उसी समय उसने सगरचक्रवति व्रत स्वीकार किया। मुनि ने सबको आशीर्वाद देकर विहार किया और राजा ने यह व्रत यथासमय तक पालकर उद्यापन किया।
___कालांतर में रतिषण पुत्र की अचानक मृत्यु हुई । पुत्र शोक से राजा को वैराग्य उत्पन्न हुप्रा । अतः धृतिषेण पुत्र को राज्यभार देकर मारुत व मिथुन राजा के साथ यशोधर मुनि के पास जिनदीक्षा लेकर कई दिनों तक तपस्या करके समाधि की जिससे पारण स्वर्ग में महाबल नाम के देव हुए।
इनके साथ दीक्षित मारुत भी उसी स्वर्ग में मणिकेतु नाम के देव हुए। वे दोनों देव प्रेम से रहते थे ।
एक दिन दोनों ने प्रतिज्ञा की कि हम दोनों में से जो प्रथम मनुष्य-भव