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________________ व्रत कथा कोष - १७१ में मरकर तू इस जन्म में आयी है । रुकमणी को आनंद हुआ, उसने वह व्रत स्वीकार किया और यथाविधि फिर से पालन किया । इस प्रकार इस व्रत की महिमा है । इसलिये अन्य जीवों को भी यह व्रत पालन करना चाहिये । जिससे सबका कल्याण हो । प्रथ संशय मिथ्यात्वनिवारण व्रत कथा व्रत विधि :- पहले के समान करें । अन्तर सिर्फ इतना है कि वैशाख शु. १४ के दिन एकाशन करें । १५ के दिन उपवास पूजा आराधना व मन्त्र जाप आदि करें । पत्ते मांडे | श्रथ स्थितीकरणांग व्रत कथा व्रत विधि :- - पहले के समान करे अन्तर सिर्फ इतना है कि कार्तिक शु. ५ को एकाशन करे, ६ के दिन उपवास पूजा आराधना करे । जाप :- ॐ ह्रीं श्रीं स्थितीकरण सम्यग्दर्शनांगाय नमः स्वाहा । ६ दम्पतियों को भोजन कराये । यह सम्यग्दर्शन स्थितीकरणांग पहले वारिषेण मुनि ने पालन किया था जिससे उसकी अच्छी गति हुयी । श्रथ संरक्षरणानंद निवारण व्रत कथा विधि :- कथा और विधि पूर्व के समान है । अन्तर सिर्फ इतना है कि बैशाख शु. ८ के दिन एकाशन करें । ६ के दिन उपवास करे । नवदेवता पूजा मन्त्र आराधना जाप करे । पत्ते माँडे । अथ सगरचक्रवर्ती व्रत कथा व्रत विधि : - मार्गशीर्ष शुक्ला के पहले शनिवार को एकासन करना । रविवार को स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनकर पूजाद्रव्य के साथ जिनालय जाये । तीन प्रदक्षिणा मन्दिर की लगाकर नंदादीप लगाये । विमलनाथ तीर्थंकर प्रतिमा पातालयक्ष व वैरोटीयक्षी सहित स्थापित कर पंचामृताभिषेक करे । एक पाटे पर १३ स्वस्तिक बनाकर पान अक्षत फूल फल वगैरह रखें । अष्टद्रव्य से तीर्थंकर की पूजा करना ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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