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________________ ६७० ] व्रत कथा कोष नारद रानी के महल में गया। वहां उसने प्रद्युम्न को देखा। फिर वह नारद द्वारका पा गया। सब बात उसने बता दी और कहा ___ "आपका पुत्र वापस आयेगा पर अभी उसमें देरी है । जब इस वन में प्राकाली मयूर नृत्य करेंगे, मणिवापिका तुम्बड़ी में भरी जायगी तब आपका लड़का घर आया ऐसा समझना । तब तक आप दुःख मत करो, वह सुखी है, उसकी चिन्ता भी मत करो।" ___ इधर सत्यभामा का पुत्र बड़ा हो गया। उसका नाम भानुकुमार रखा। दुर्योधन ने अपनी पुत्री उसको देने का निश्चय किया । रुकमणी चिन्तित हुई । उस समय नारद पम्झन को लेकर द्वारका अाया । पूर्व कहे अनुसार मोर नाचने लगे मणिवापिका भरी। यह देखकर पुत्र अब आयेगा ऐसा मालूम हुआ । माता-पिता से पद्य म्न ने भेंट को सब जगह आनंद ही प्रानन्द छा गया और दुर्योधन की पुत्री की शादी भानुकुमार से न होकर पद्युम्न कुमार से हुयी। कई दिन चले गये, नेमिनाथ तीर्थंकर का समवशरण उस वन में पाया। सब लोग दर्शन को गये। प्रभुमुख से धर्म-श्रवण किया, तब रुकमणी ने वरदत्त गणधर से पूछा "पूर्व भव में मैंने कौनसा पाप किया था जिसने मुझसे मेरे पुत्र को अलग किया ?" तब गणधर ने कहा "पूर्व में मगध देश में लक्ष्मी ग्राम में सोमसेन ब्राह्मण रहता था। उसकी स्त्रो लक्ष्मीमति थी। उसने समाधिगुप्त मुनिराज की निंदा की जिसके कारण वह दुर्धर पाप से ग्रसित हुआ जिससे मरकर वह नरक में गयी। वहाँ से वह सात भव मौर लेकर नर्मदा के पेट से दुष्कुल में उत्पन्न हुई । जन्म लेते ही उसके माता-पिता मर गये, औरों ने ही उसका पालन किया । बड़ी होने पर वह भीख मांगने लगी। एक दिन नदी किनारे मनिराज को देखकर उसके मन में उनके दर्शन की इच्छा हुई। बड़ी भक्ति से उसने मुनि के दर्शन किये और मुनि से व्रत लिये । वहां से उसने मरकर नंदन श्रेष्ठि के घर मक्ष्मीमती नाम से जन्म लिया । श्रेष्ठी के घर मुनि आहार के लिये प्राये। श्रेष्ठी ने नवधाभक्तिपूर्वक उनको आहार दिया। उस समय लक्ष्मीमती ने उनके मुख से अपना पूर्व भव जान लिया । उनके पास से उसने यह व्रत लिया। व्रत का यथाविधि पालन किया । अन्त
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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