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व्रत कथा कोष
तीन तिथियों की एक दिन में स्थिति इस प्रकार मानी जाती है-शुक्रवार । को अष्टमी प्रातःकाल एक घटी १५ पल है, नवमी ५१ घटी ४० पल है और दशमी छह छटी ५ पल है तथा शनिवार को दशमी ४६ घटी २० पल है । इस प्रकार की स्थिति में शुक्रवार को अष्टमी, नवमी और दशमी तीनों तिथियां रही हैं । इन तीनों में से नवमी तिथि क्षयतिथि मानी जायेगी। अतः नवमी के कार्य का निषेध रहेगा।
जैनाचार्यों ने प्रतिष्ठा, गृहारम्भ, व्रतोपनयन, प्रति मांगलिक कार्यों के लिए तिथिवृद्धि और तिथिक्षय दोनों को त्याज्य बताया है। प्रातःकाल में जब तक ६ घटी प्रमाण तिथि न हो तब तक कोई भी शुभकार्य नहीं करना चाहिए ।
___विष्ण धर्मपुराण, नारद संहिता, वशिष्ठ संहिता, मुहूर्तदीपिका, मुहूर्तमाधवीय आदि वैद्यक ज्योतिष के ग्रंथों में भी धर्मकृत्य के लिए तीन मुहर्त अर्थात् छह घटी प्रमाण तिथि का विधान किया गया है। विद्धा तिथि के होने पर किसी-किसी प्राचार्य ने तीन मुहूर्त प्रमाण तिथि को भी अग्राह्य बताया है।
समस्त शुभ कार्यों में व्यतिपात योग, भद्रा, वैधृतिमाम का योग, अमावस्या, क्षयतिथि, वृद्धा तिथि, क्षयमास कुलिकयोग, अर्धयाम, महापात, विष्कंभ और वज्र के तीन-तीन दण्ड, परिध योग का पूर्वार्ध, शुलयोग के पांच दण्ड, गण्ड और अतिगण्ड के छह-छह दण्ड एवं व्याघात योग के नौ दण्ड समस्त शुभ कार्यों में त्याज्य हैं।
प्रत्येक शुभ कार्य के लिए पंचांग शुद्धि देखी जाती है-तिथि, नक्षत्र, वार, योग और कारण । इन पांचों के शुद्ध होने पर ही कोई भी शुभ कार्य करना श्रेष्ठ होता है। यों तो भिन्न-भिन्न कार्यों के लिए भिन्न-भिन्न तिथियां ग्राह्य की गई हैं, परन्तु समस्त शुभ कार्यों में प्रायः १-४-६-१२-१४-३० तिथियां त्याज्य मानी गई हैं। ग्राह्य तिथियों में भी क्षय और वृद्धा तिथियों का निषेध किया गया है ।
अश्विनो, भरणो, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, पार्दा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विषाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपदा, उत्तरा भाद्रपदा और रेवती-ये २७ नक्षत्र हैं।