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व्रत कथा कोष
व्रतोपनयन आदि कार्यों के लिए तिथि का मान
सोदयं दिवसं ग्राह्यं कुलाद्रि घटिका प्रमम् । व्रते वटोपमागत्य गुरुः प्राहृत्विति स्फुटम् ।। ६ ।।
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अर्थ - छह घटी प्रमारण होने पर दिनभर के लिए वही तिथि मान ली जाती है । अतः व्रत ग्रहण, उपनयन, प्रतिष्ठा आदि कार्य उसी तिथि में करने चाहिए इस प्रकार पूर्वोक्त प्रश्न के उत्तर में गुरु ने स्पष्ट कहा है ।
विवेचन - प्राचीन भारत में तिथिज्ञान के लिए दो मत प्रचलित थे - हिमाद्रि और कुलाद्रि । हिमाद्रिमत उदयकाल में तिथि के होने पर हो तिथि को ग्रहण करता था, पर कुलाद्रिमत उदयकाल में छह घटी प्रमाण तिथि के होने पर ही तिथि को ग्रहण करता था । षटकुलाचल होने के कारण छह घटी प्रमाण उदयकाल में तिथि का प्रमाण मानने से ही इस मत का नाम कुलाद्रिमत या कुलाद्रि घटिका मत पड़ गया था । कुछ लोग हिमाद्रिमत का प्रमाण दस घटी प्रमाण भी मानते थे ।
ज्योतिष शास्त्र में तिथियां दो प्रकार की बतायी गई हैं-शुद्धा और विद्धा । 'दिने तिथ्यन्तर सम्बन्ध रहिता शुद्धा' अर्थात् दिनमान में एक ही तिथि हो, किसी अन्य तिथि का सम्बन्ध न हो तो शुद्धा तिथि कहलाती है । 'तत्सहिता विद्धा' एक दिन में दो तिथियों का सम्बन्ध हो तो विद्धा तिथि कहलाती है । प्रारम्भसिद्धि ग्रंथ में विद्वा तिथि का विश्लेषण करते हुए कहा है कि जो तिथि तीन वारों में वर्तमान रहे, वह वृद्धा कहलाती है । मतान्तर से इसका नाम विद्धा तिथि हैं । जब एक ही दिन में में तीन तिथियाँ या दो तिथियां वर्तमान रहें वहां भी विद्धा तिथि मानी जाती है । जब एक दिन में तीव्र तिथियां वर्तमान रहें, वहां मध्यवाली तिथि का क्षय माना जाता है । तथा जब एक दिन में दो तिथियाँ वर्तमान रहें, तब उत्तरवाली तिथि का क्षय माना जाता है ।
जैसे रविवार की रात्रि में तीन घटी रात्रि शेष रहने पर पंचमी प्रारम्भ हुई, सोमवार को ६० घटो पंचमो है तथा मंगल को प्रातःकाल में तीन घटी पंचमी है पश्चात् षष्ठि तिथि प्रारम्भ होती है । यहां पंचमी तिथि रविवार, सोमवार और मंगलवार इन तीन दिनों में व्याप्त है, अतः वृद्धा तिथि मानी जायेगी । यह तिथि प्रतिष्ठा, गृहारम्भ, उपनयन प्रादि समस्त शुभ कार्यों में त्याज्य मानी गई है ।