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व्रत कथा कोष
शक्ति न हो तो किसी एक ही वस्तु का आहार ग्रहण किया जाता है । आहार में दो अनाज या दो वस्तुएं नहीं होनी चाहिए । केवल एक अनाज होना आवश्यक है
द्वितीया के दिन सप्तपरमस्थान पूजन, अभिषेक के उपरान्त 'प्रों ह्रीं अहं सद्गृहस्थपरमस्थानप्राप्तये श्रीचन्द्रप्रभजनेन्द्राय नमः' मन्त्र का जाप करना, तृतीया को 'प्रों ह्रीं अहं श्री पारिवाज्यपरमस्थानप्राप्तये श्रीनेमिनाजिनेन्द्राय नमः' मन्त्र जाप, चतुर्थी को 'ओं ह्रीं अहं श्रीसुरेन्द्रपरमस्थानप्राप्तये श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय नमः' मन्त्र का जाप, पचमी को प्रों ह्रीं अहं श्रीसाम्राराज्यपरमस्थानप्राप्तये श्री शीतलनाथजिनेन्द्राय नमः' मन्त्र का जाप; षष्ठी को 'ओं ह्रीं अहं श्री आर्हन्त्यपरमस्थानप्राप्तये श्री शान्तिनाथजिनेन्द्राय नमः' मन्त्र का जाप ; एवं सप्तमी को 'नों ही अहं श्रीनिर्वाणपरमेस्थानप्राप्तये श्रीवीरजिनेन्द्राय नमः' मन्त्र का जाप किया जाता है । सप्तदिन व्रत करने के उपरान्त उद्यापन करने का विधान है । व्रत के दिनों में रात्रि जागरण करना चाहिए। यदि शक्ति न हो या और किसी प्रकार की बाधा हो तो मध्यरात्रि में एक प्रहर शयन करना चाहिए।
सप्त परमस्थान व्रत श्रावण महिने में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से सप्तमी तक करना चाहिये । इस दिन अभिषेक पूजन जप करना चाहिये । कथा सुनकर दान वगैरह देना चाहिये । उस दिन एक ही अन्न का आहार एक समय हो लेना चाहिये, उस दिन अभिषेक के बाद सप्त परमस्थान की पूजा करनी चाहिये और “ॐ ह्रीं अहं सज्जाति परमस्थान प्राप्तये श्री अमयाजिनेन्द्राय नमः" इस मन्त्र का १०८ बार जाप करना चाहिए, सामायिक प्रादि क्रिया के बाद यदि उपवास हो तो उपवास करना नहीं तो एक अन्न का आहार लेना चाहिये।
दूसरे दिन सद्गृहस्थ परमस्थान ॐ ह्रीं प्रहं प्राप्तये श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय नमः।
___ तीसरे दिन ॐ ह्रीं अर्ह श्री सुरेन्द्र परमस्थान प्राप्तये श्री नेमिनाथ जिनेन्द्राय नमः।
चौथे दिन ॐ ह्रीं अर्ह श्री सुरेन्द्र परमस्थान प्राप्तये श्री शीतलनाथ जिनेन्द्राय नमः।