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________________ व्रत कथा कोष 1६६१ सन्तपरमस्थान व्रत की विधि अथ सप्तपरमस्थानं श्रावणमासे शुक्लपक्षादिमदिनमारभ्य शुक्लसप्तदिनं यावत् कार्यम् । व्रतदिने स्नपनपूजनजाप्य कथाश्रवणदानानि कार्यारिण। एकवस्तुभक्षणं कार्यमा सप्तदिनम्, विधिवत् समाप्तावुद्यापनं च । तत्फलम् जातिमैश्वर्यगार्हस्थ्यं समुत्कृष्टं तपस्तथा । सुराधीशपदं चक्रिपदं चाहन्त्यसप्तकम् ॥१॥ सन्निर्वाणपदं भव्यलोके हि जिनभाषितम् । क्रमाक्रमविदामेति परमस्थानसप्तकम् ॥२॥ अर्थ :-सप्तपरमस्थान व्रत में श्रावण मास सुदी प्रतिपदा से श्रावण सुदी सप्तमी तक व्रत करना चाहिए । व्रत के दिन अभिषेक, पूजन, जाप, कथाश्रवण, दान आदि कार्यों को करना चाहिए। सातों दिन एक ही वस्तु का भोजन किया जाता है । विधिवत् व्रत करने के उपरान्त उद्यापन किया जाता है । इस व्रत का फल निम्न है ___जाति, ऐश्वर्य, गार्हस्थ्य, उत्कृष्ट तप, इन्द्र पदवी या चक्रवर्ती पदवी, अर्हन्तपद की प्राप्ति इस व्रत के करने से होती है। संसार में निर्वाण ही परमपद है, ऐसा जिनेन्द्र भगवान् ने कहा है। इस प्रकार सप्तपरमस्थान व्रत के पालने से सातवां परमपद निर्वाण प्राप्त होता है । अभिप्राय यह है कि सप्त परमस्थान व्रत के पालने से सप्त परमपद की प्राप्ति होती है । यह व्रत लौकिक अभ्युदय के साथ निर्वाण पद को भी देने वाला है । जो श्रावक इस व्रत का पालन करता है, वह परम्परा से अल्पकाल में ही निर्वाण को प्राप्त कर लेता है । विवेचन :-सप्तपरमस्थान व्रत श्रावण सुदी प्रतिपदा से सप्तमी तक सात दिन किया जाता है । प्रतिपदा के दिन अर्हन्त भगवान का अभिषेक तथा सप्तपरमस्थान पूजन करने के उपरान्त 'प्रों ह्रीं अहं सज्जातिपरमस्थानप्राप्तये श्रीअभयजिनेन्द्राय नमः' इस मन्त्र का जाप करना चाहिए । स्वाध्याय, सामायिक आदि धार्मिक क्रियाओं से निवृत्त होकर उपवास करना चाहिए । यदि उपवास करने की
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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