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________________ वत कथा कोष [ ६५ थी, उसके हाथ से कभी धर्म विरुद्ध कार्य नहीं होता था परन्तु घर में हमेशा दरिद्रता रहती थी । फिर भी वह सन्तोष धारण कर धर्म करती रहती थी, उसकी पुत्र संतति भी अच्छी थी, पर उनका पालन-पोषण कैसे करूं यह चिन्ता उसे हमेशा रहती थी । एक दिन भाग्योदय से उस नगर में तपस्वी महाराज आये । उनका दर्शन करने पूरी नगरी गई, वहां मुनि महाराज के मुख से धर्मोपदेश सुन कर अपने घर का पूरा दुःख भूल गई और मुनिमहाराज से संपत शुक्रवार व्रत की कथा सुनकर उसने यह व्रत लिया और यथाशक्ति उसका पालन करने लगी । था, वह धनवान था, अपने पुत्र के मौजी लोगों को सात दिन खाने के लिए बुलाया उसका भाई उसी नगर में रहता बंधन के निमित्त से अपने गांव के सब पर अपनी बहन को उसने नहीं बुलाया । बहन को यह बात ज्ञात हुई । तब उसने सोचा कि शायद वह मुझे भूल गया होगा क्योंकि हम दोनों तो एक रक्त से ऊत्पन्न हुये हैं । में खुद ही वहां जाकर मोज कर आऊंगी ऐसा सोचकर वह अपने बच्चों सहित भोजन करने गयी । खाना शुरू था सब लोग भोजन कर रहे थे, तब उसका भाई कोई बच तो नहीं गया है सब लोग आये हैं न ऐसा सोचकर देखने के लिये निकला । तब उसने अपनी बहन को भोजन करते हुये देखा तो वह उसके पास जाकर कहने लगा “ शर्म नहीं आती ग्रामन्त्रण दिये बिना हो किसी के घर पर भोजन करने जाने में ?" दरिद्री है इसलिये मैंने तुझे नहीं बुलाया । अब तू कभी भूलकर भी मत आना । वह खाना वैसे ही छोड़कर घर चली आयी। दूसरे दिन उसके लड़के ने बहुत ग्रह किया जिससे वह फिर दूसरे दिन भोजन पर गयी । तब उसके भाई ने बहुत ही अपशब्दों से उसका अपमान किया व हाथ पकड़कर पंक्ति के बाहर निकाल दिया । उसके मन में बहुत ही दुःख हुआ । मैंने पूर्व भव में ऐसा कौनसा ! पाप किया है जिससे मुझे आज इतनी दरिद्रता भोगनी पड़ रही है । वह घर आयी और पद्मावती की स्तुति की और सो गयी । स्वप्न में पद्मावती वस्त्रालंकार से सुशोभित उसके सामने आयी और कहने लगी ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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