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________________ ६५८ ] व्रत कथा कोष तब इस व्रत की कथा पढ़नी चाहिये । पद्मावती के सहस्र नाम के प्रत्येक नाम के उच्चारण के साथ कुकुम लवंग अगर पुष्प आदि बीजाक्षर के साथ प्रत्येक दान के अर्घ के अन्त में अर्घ देना चाहिये, गंधोदक लेकर घर आना चाहिये । घर में प्रत्येक स्थान पर वह छिड़कना चाहिए। ___ श्रावण के अन्तिम शुक्रवार को पद्मावती को साड़ी पहनानी चाहिए। अलंकार से सुशोभित करना चाहिये । हरी चूड़ियां पाँच हलकुण्ड खोपरे की ५ काचली, कुकुम केला निबू खाटक शक्कर और दो नारियल ये सब लेकर पद्मावती की अोटी भरनी चोली खड पहनाना । ओटी भरते समय "जय स्फटिक रूपदभामिनि श्री पद्मावति अघहारिणी धरणेन्द्र कुल यक्षिणी दीर्घ आयुरारोग्यरक्षिणी" यह मन्त्र बोलना चाहिये। बाद में प्राप्त परिवार हल्दी कुकुम शक्कर गुड़ खोपरा पान सुपारी वगैरह बांटना चाहिये । एकत्रित हुई सौभाग्यवति स्त्रियों को कुकुम लगाना चाहिए । ऐसा यह व्रत ५ वर्ष तक करना चाहिए । उद्यापन करना चाहिए । उद्यापन विधि :-पंचकोडी कुभ स्थापन करके पांच कलश की स्थापना करनी चाहिए, पंचवर्णी रेशमी सूत पांचकोण करके चार दिशाओं में केले के चार खंभे खड़े करे। उसका मंडप बांध करके उसके ऊपर चार दीपक लगावे, कुमकुम मिश्रित अक्षत और फूलों की वृष्टि करनी चाहिए, पांच पकवानों के नैवेद्य अर्पण करना चाहिए। देवशास्त्र गुरु, पद्मावती व सुवासिनी स्त्रियों को कुमकुम व मोती डालकर देना चाहिए । पांच मंगल वस्तु जिनमन्दिर में देनी चाहिए, प्रायिका को वस्त्रदान देना व आहार देना चाहिए, श्रावक को भोजन देना चाहिए। कथा प्राचीन समय में सौराष्ट्र देश में परिभद्रपुर में राजा विक्रमादित्य राज्य करता था। वह महापराक्रमी, न्यायनिष्ठ, धार्मिक व प्रजावत्सल था, उसकी पटरानी भूमिभुजा देवी थी यह साध्वी कार्यकुशल व दक्ष थी इन दोनों ने अपने देश में व बाहर अपने धर्म की अच्छी प्रभावना को थीं। इसी नगर में एक दरिद्री वणिक श्रुणुय रहता था। उसकी स्त्री रूखभावनी थी, उसकी जैन धर्म पर अति गाढ़ श्रद्धा
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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