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व्रत कथा कोष
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करके पारणा करना फिर अलग-अलग छः प्रोषधोपवास क्रम से करना । प्रोषधोपवास एक भुक्ति करना (अर्थात् जितने प्रोषधोपवास होते हैं उतने एक भुक्ति) फिर छः प्रोषधयुग्म करना अर्थात् छः समय दो-दो उपवास करके छः पारणे करना । फिर चार भिन्न-भिन्न प्रोषधोपवास करना फिर पारणा करना फिर बीच में पारणा करना अर्थात् तीन उपवास के बाद पारणा करना बाद में चार उपवास एक पारणा ऐसे छः बार करना । पुनः तीन उपवास एक पारणा करके चार उपवास एक पारणा करना फिर छः बार अलग-अलग तीन-तीन उपवास करके पारणा करे फिर पांच उपवास करके पारणा करना चाहिए । फिर छः बार चार उपवास एक पारणा करना फिर सरिंभों का त्याग करके भव्य जोवों को छः बार अलग-२ पांच उपवास एक पारणा करना चाहिये । फिर एक उपवास एक पारणा ऐसा सात बार करना चाहिए। फिर छः उपवास लाईन से और पारणा इस प्रकार छः बार पारणा करना । इसके बाद प्रोषधोपवास के सप्तक छः समय अलग-अलग करना। इस व्रत के पारणों की संख्या ५१ है और उपवास की सख्या १६५ है। व्रत शुरू करने पर पूर्ण होने तक क्रम से करना चाहिए । व्रत पूर्ण होने पर शक्ति अनुसार उद्यापन करना चाहिए । इस व्रत में मास तिथि वगैरह का नियम नहीं है । कभी भी शुरू कर सकते हैं।
संपत् शुक्रबार व्रत यह व्रत संसारी जीवों को पति-पत्नी दोनों को करना चाहिए । यह अखण्ड सौभाग्य के लिए करना चाहिए। श्रावण महिने का प्रत्येक शुक्रवार सम्पत् शुक्रवार होता है । उस दिन उपवास करना चाहिए यदि उपवास न हो सके तो एकाशन करना चाहिये पर उपवास करना उत्तम है।
उस दिन मन्दिर में जाकर भगवत के दर्शन कर श्री पार्श्वनाथ भगवान के अभिषेक के बाद पद्मावती देवी की आराधना करनी चाहिये, इसके लिये दूसरे प्रासन पर पद्मावती की मूर्ति विराजमान करनी चाहिये, उसको नाना प्रकार के वस्त्राभरण पहनाना चाहिए, दीप धूप फूलों के हार आदि से उसकी शोभा बढ़ानी चाहिये, हल्दी कुकुम भिगोये हुए चने इससे उसकी पूजा करनी चाहिये । इसके बाद मंगल सूत्र उसके गले में पहनाना चाहिये व पूर्णार्घ देना चाहिये, बाद में प्रारती बोलकर विसर्जन करना चाहिये।