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________________ व्रत कथा कोष [ ६५५ व्रत के दिन जिनेन्द्र भगवान का १०८ कलशों से पंचामृत अभिषेक करना चाहिए । उपवास के दिन ॐ ह्रीं सर्व करित विनाशनाय चतुर्विंशति तीर्थंक राय नमः इस मन्त्र का त्रिकाल जाप करना चाहिए । यह व्रत चिन्तामणी रत्न के समान सर्वसुखों को देता है । यह व्रत करते समय तिथि का क्षय हो तो यह व्रत एक दिन पहले ही करे, तिथि की वृद्धि हो तो उस दिन उपवास करना चाहिए । सुखकरण व्रत यह व्रत साढ़े ४ महीने का है, एक बार व्रत शुरू किया तो साढ़े ४ महिने तक पूरा करना चाहिए । इसमें एक उपवास एक एकाशन इस प्रकार क्रम है । व्रत पूर्ण होने तक शीलव्रत का पालन करना चाहिए । धर्मध्यान करना चाहिए । व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिए । नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप करना चाहिए। ---गोविन्दकृत व्रत निर्णय सुखसमाधि व्रत किसी भी महिने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को उपवास करना फिर एकाशन फिर दो उपवास एक एकाशन करना चाहिए, इस प्रकार पूरे मास तक करे। व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करे । -गोविन्दकविकृत व्रत निर्णय सुख सम्पत्ति व्रत इस व्रत की विधि तीन हैं इसलिए उसके तीन भेद हैं । (१) वृहत्सुख सम्पत्ति व्रत (२) मध्यम सुख सम्पत्ति व्रत (३) लघुसुख सम्पत्ति व्रत । विधि- (१) वृहत्सुख सम्पत्ति व्रत-इस व्रत के १२० उपवास हैं प्रतिपदा का एक, द्वितीया के दो, तृतीया के तीन इस क्रम से जो तिथि हो उसके उतने उपवास करना अर्थात् पूर्णिमा के १५ तक करना । इस प्रकार १२० उपवास होते हैं, एक-एक तिथि के उपवास पूर्ण करके दूसरी तिथि करनी चाहिए । (२) मध्यम सुख संपत्ति व्रत-प्रत्येक महिने की पूर्णिमा और अमावस्या को उपवास करना इस प्रकार वर्ष में २४ उपवास होते हैं । ५ वर्ष तक यह व्रत करने से १२० उपवास होते हैं।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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