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________________ ६५४ । व्रत कथा कोष पारणा, छः उपवास एक पारणा, सात उपवास एक पारणा फिर एक उपवास एक पारणा इस क्रम से ७ उपवास तक करना । इस क्रम से ६ बार करना अर्थात १६६ उपवास व ४६ पारण होंगे अर्थात् यह कुल २४५ दिन में पूरा होता है। व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करे, नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप करावे । सरस्वती व्रत इस व्रत में तिथि महिना पक्ष का नियम नहीं है, इस व्रत में कुल एकसौ बीस उपवास हैं । वह कभी भी एक वर्ष में पूर्ण होता है, व्रत पूर्ण होते ही यथाशक्ति उद्यापन करना चाहिए । शक्ति नहीं हो तो व्रत दुबारा करे । -गोविन्दकृत व्रत निर्णय संयोग पंचमी व्रत महिने के किसी भी रविवार को पाने वाले शुक्ल व कृष्ण पक्ष में पंचमी को प्रोषधोपवास करना । यह व्रत ५ वर्ष करना चाहिए। --गोविन्दकविकृत व्रत निर्णय सर्वार्थसिद्धि व्रत कार्तिक शुक्ल अष्टमी से क्रम से आठ उपवास करना अर्थात् सप्तमी को एकाशन और अष्टमी से १५ तक उपवास, कार्तिक कृष्ण १ को एकाशन, इन दिनों में श्री सिद्धाय नमः इस मन्त्र का जाप १०८ बार करना चाहिए । उद्यापन करना चाहिए, नहीं किया तो व्रत पुन: करे । ___-व्रतविधि निर्णय व क्रियाकोष सुख चिन्तामणी व्रत इस व्रत में चतुर्दशी के चौदह, एकादशी के ११, अष्टमी के पाठ, पंचमी के पांच, तृतीया के तीन इस प्रकार ४१ उपवास करने चाहिए । इस व्रत की शुरूपात करने के लिए कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष का नियम नहीं है । सिर्फ तिथि का नियम है । प्रत्येक उपवास प्रोषध करना चाहिए । इस व्रत की पांच भावना है चतुर्दशी के सब उपवासों में पहली भावना भानी, एकादशी को सब उपवासों में दूसरी भावना भानी, उसी प्रकार अष्टमी को तीसरी भावना, पंचमी को चौथी भावना, तृतीया को ५वीं भावना भानी चाहिए।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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