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________________ व्रत कथा कोष "?ि?" इस प्रकार विभिन्न कार्यों के लिए शुभाशुभ तिथियों का विचार कर अशुभ तिथियों का त्याग करना चाहिए। प्रत्येक शुभ कार्य में समय शुद्धि का विचार करना परमावश्यक है । व्रतारम्भ के लिए तिथि का प्रमाण छः घटी सर्व सम्मति से स्वीकार किया गया है । S तिथिप्रमारण के लिए पद्मदेव का मत - इत्यादिमातमालोक्य नियतं रसघटीप्रमम् । प्रयं श्री पद्मदेवादि सूरिभिर्ज्ञानधारिभिः ॥७॥ - अर्थ – इस प्रकार व्रत तिथि के प्रमाण के लिए नाना मत मतान्तरों का अवलोकन करके ज्ञानवान श्री पद्मदेव श्रादि महर्षियों ने रस घटी -छः घटी प्रमाण तिथि के मत को ही प्रमाण माना है । अर्थात् जैन मान्यता में उदया तिथि व्रत के लिए ग्राह्य नहीं है । किन्तु छह घटी प्रमाण तिथि होने पर ही व्रत के लिए ग्राह्य मानी गई है । पद्मदेव के मत का उपसंहार तदेव पद्मदेवाचार्योक्तं रसघटिमतं व्रत विधाने ग्राह्यम् । अर्थ - - व्रतविधान के लिए छह घटिका प्रमाण ही पद्मदेव प्राचार्य के मत से ग्रहण करना चाहिए । दस घटिका प्रमाण व्रत तिथि को नहीं मानना चाहिए । श्री कुन्दकुन्दाचार्यं तथा मूलसंघ के अन्य प्राचार्यों का मत भी छः घटिका प्रमाण तिथि ग्रहरण करना है । विविधातिथिसमयाते क्रियते हि व्रतं कथम् । प्रच्छेति गुरु शिष्यो विनयावनतमस्तकः ||८|| अर्थ – एक ही दिन कई तिथियों के आ जाने पर व्रत कब करना चाहिए अर्थात् कभी-कभी एक ही दिन तीन-तीन तिथियां होती हैं । ऐसी अवस्था में व्रत कब करना चाहिए इस प्रकार का प्रश्न विनम्र एवं नतमस्तक होकर शिष्य ने गुरु से पूछा। विवेचन - मध्यम मान तिथि का यद्यपि ६० घटिका है, परन्तु स्पष्ट मान तिथि का सदा घटता बढ़ता रहता है, कोई भी तिथि ६० घटिका प्रसारण एकाध बार ही आती है । कभी कभी ऐसा अवसर भी आता है, जब एक ही तिथियां आती हैं । बा
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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