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व्रत कथा कोष
इमि कहि द्विपिचल्यो तत्काल, और सुनो श्रेणिक भूपाल । मावे करन सगाई कोय, तिलकमती जांचे तब सोय ।। बन्धुमती भाखे जब माय, यामें अवगुण हैं अधिकाय । मम पुत्री गुरगवती घनी, रूपादिक शुभलक्षण भनो । तातें मो कन्या शुभ जान, वर-नक्षत्र सुव्याहो प्रान । इनकी माने नाहीं बात, तिलकमती जांचे शुभ गात ।। कही फेरि यों ही तब सही, मन में कपटाई धर लई । ब्याह समै कन्या मम सार, कर दूंगी ब्याहित जिहिवार ।। करी सगाई प्रानन्द होय, ब्याह समै आये तब सोय । बन्धुमती की फेरों बार, तिलकमती बहुभांति सिंगार ॥ घड़ी दोय रजनी जब गई, तिलकमती को निजसंग लई । जब मशान भूमी मधि जाय, पुत्री कतिहि थान बिठाय ॥ तहाँ दीप जोये शुभ चार, पूरे तेल उद्योत अपार । चौगिरधा दीपक चउ धरे, मध्य तिलकमति थिरता करे । तिलकमती सों भाषी जहां, तो भरता प्रावैगो इहां । ताहि विवाह प्रावजे बाल, यों कहकर चाली तत्काल ॥
दोहा घर एक मैहि समीप थी, सो दोन्हों दुख पाय । नितप्रति रजनी के विषे, आवे तहां सुराय ॥ दीप निमित नहिं तेल दे, तबहिं अंधेरे मांहि । राजा बैठे हो रहे, सुख पावे अधिकाहि ।।
चौपाई कछुइक दिन ऐसे ही गयो, बन्धुमती तब यों वच कह्यो। अपने गुवाल्यातेकहि जाय, दोय बुहारी तो दे लाय ।। तिलकमती पारे करि लई, रात भये जिनपति मैं गई । करि क्रीडा सुखबचनउचार, नाथ सुनो अरदास हमार ॥