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व्रत कथा कोष
शुक्लपक्ष दशमी दिन सार, दश पूजा करि वसु परकार । दशस्तोत्र पढ़िये मन लाय, दशमुख का घटसार बनाय ।। तामें पावक उत्तम धरे, धप दशाङ्ग खेय अघ हरे । सप्तधान को स्वस्तिक सार, करि तापरि दश दीपक धार । ऐसे पूज करे मन लाय, सुखकारी जिनराज बताय । तातें इस विधि पूजा करे, सो भविजीव भवोदधि तरे ॥ इक गोवर्धनपुर नगर सुजान, वृषभदत्त वाणिज तिह थान । ताके एक सुता शुभ भई, बन्धुमती तसु संज्ञा दई ॥ तासों कोनों सेठ विवाह, बाजा बाजे अधिक उछाह । परणि सु घर लायो सुखकार, प्रागे और सुनो विस्तार ।
दोहा भोग शर्म करती हुई, कन्या इक लखि भाव । नाम धरयो तब मोदतें, तेजोमती सुभाय ॥
प्यारी न मात को लागे, नहिं तिलकमती सों रागे । नानाविधि कर दुख द्यावे, ताके मन सों नहिं भावे ॥ तब तात सुता सो निहारी, कन्या यह दुखित विचारी। तब दासी प्रादिक नारी, तिनसों इमि सेठ उचारी ॥ याको सेवा सुखकारी, कोजो तुम भक्ति विचारी । ऐसे सुनते सुख पावे, तब नीकी भांति खिलावे ।।
. चौपाई एक समय कनकप्रभ राय, दीपान्तर जिनदत्त पठाय । नारो सों सब भाखे जाय, हमखों राजा दोपखिनाय ॥ तातें एक सुनो तुम बात, इह दो परणाज्यो हरषात । अष्टगुणों युत जो वर होय, इसको वरि दीजो अवलोय ।।