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________________ व्रत कथा कोष जुगल बुहारो मेरी मात, जांची है तुम पैं हरषात । यातल्या दोज्यो तुग देव, स्वीकृत कीन्हों नृपस्वयमेव ॥ सभा जाय बैठयो तब राय, स्वर्णकार तब सार बुलाय । तिनते कही बुहारी दोय, ला द्यो जो प्रति उत्तम होय ॥ यों सुनि तबही कञ्चनकार लागि गये घड़ने अधिकार । स्वर्णसक सबके मन मोहि, रत्नजड़ितमूठयो अति सोहि ॥ षोडशभूषरण और मंगाय, डाबा में धरि चाल्यो राय । एक वेश उत्तम करि लयो, रजनी समय नारि ढिग गयो || रत्नजड़ित की कोर जुसार, शोभे सारी के अधिकार । भूषरण वेश दये नृप जाय, दोय हारी ललित सुहाय ॥ नारि चरण नृपके तब धोय, सिर केशनि से पूजि बहोय । क्रीड़ा करि बहुते सुख पाय, प्रात भये नृपती घर जाय ॥ तिलकमति प्रति हर्षित होय, जाय दई सु बुहारी दोय । और दिखाये भूषण वेश, माता देख्यो सार जु वेश ।। मन में दुखित वचन यों दयो, तेरो भरना तस्कर भयो । राजा के भूषन रू वेश, लाय दये तोकों जो प्रशेष || हम सबको दुखद्यासी सोय, यों कहि खोसि लये दुखि होय । इह दलगीर भई अधिकाय, रात विषै पतिसों कहि जाय ।। भूषण वेश खोसि लये माय, निज-समीप राखे दुखपाय । राय तबै सम्बोधी जोय, मनचिन्ता राखो मति कोय || श्रौर घरणे ही देहू लाय, यों सुनि तिलकमती सुखपाय । दीप थकी जिनदत्त सुश्राय, बन्धुमती पतिसों बतलाय || तिलकमती के अवगुण घना, कहा कहूं पति अब वा तना । ब्याह समे उठिगी किमियान, परण्यो चोर तहां सुखठान ।। सो तस्कर भूपति के जाय, भूषरण वेश चोर कर लाय । याकां वह दीन्हें तब प्राय खोसि रखे मो ढिग में लाय ॥ [ ६३७
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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