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व्रत कथा कोष
इस प्रकार इस व्रत को दश वर्ष तक करें, अन्त में व्रत का उद्यापन करे, शीतलनाथ भगवान की यक्षयक्षि सहित नवीन प्रतिमा बनवाकर पंच कल्याण प्रतिष्ठा करावे, शीतलनाथ चरित्र को छपवाकर शास्त्रदान करे, सोना चाँदी, पुष्प नारियल, सुगन्धित चूर्ण, पान, सुपारी, गंधाक्षत ये सब टोकरी में डालकर देव, शास्त्र, गुरु के सामने चढ़ावे, नमस्कार करे, दश मुनि संघ को श्राहारादि देकर शास्त्रादि श्रावश्यक वस्तु प्रदान करे, आर्यिकाओं को वस्त्रादि देवे, गृहस्थाचार्य (पुरोहित) को भी आहारदान देकर वस्त्रादिक देकर आदर सत्कार करे, दीन-हीन, याचक लोगों को यथाशक्ति दान देवे, यह व्रत की पूर्ण विधि है ।
यह विधि दक्षिण परम्परानुसार है ।
श्री वीतरागाय नमः
सुगन्धदशमी व्रत कथा चौपाई
पञ्च परमगुरु वन्दन करों, ताकरि निज भवबन्धन हरों । सार सुगन्धदशै व्रत कथा, भाषत हूं भाषी मुनि यथा ।। गुरु श्ररु शारद के परसादि, वरणों भेद सार पूजादि । जे भवि व्रत यह करि हैं सही, तिन स्वर्गादिक पदवी लही || सन्मति जिन गौतम मुनिराय, तिनके पद नमि श्रेणिकराय । करत भयो इसतुति सुखकार, विनकारण जगबन्धु करार || भव्य कमल - प्रतिबोधन- सूर्य, मुक्ति- पन्थ निर्वाहन धूर्य श्रुतवारिधिकों पोतसमान, इन्द्रादिक या सेवक जान || व्रत सुगन्धदशमी इह सार, कोन्हों किनकिन विधि विस्तार । श्ररु याको फल कैसे होय, मोकों उपदेशो मुनि सोय || गौतममुनि का उत्तर
मगधदेश के तुम भूपार, सुन व्रत की कथा सुखकार । परम प्रश्न यह तुमने कहा, मैं भाषों ज्यों जिनवर कहा ।।