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धेत कथा कोष
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कामsammer
शक्तिप्रमाण चतुर्विध संघ को आहारादिक दान देकर स्वयं भोजन करे, इस प्रकारे इन पांच दशमियों को पूर्वोक्त विधि से व्रत करे, यही इस व्रत की विधि है, यही काल है, व्रत उद्यापन भी यही है। । मक कथा -
- श्रीमदमरेंद्र बंद्य काममदध्वंसि विजयि पार्श्वतीर्थाधिपं, ३
प्रेमाभिवंद्य कामित फलप्रदां शुद्ध दशमी कथामभिस्तौमि ।। } इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में अवंति 'नाम का देश हैं, उस देश में उज्जयिनी नाम को एक सुन्दर नगरी है, उस नगर का राजा जिनसेन और पत्नी जित सेना थी, उस राजे का एक जिनदत्त नाम का राजश्रेष्ठी था, उस श्रेष्ठी की स्त्री का नाम धनवती था, सेठ के श्रीकांत आदि पांच पुत्र थे, इस प्रकार अपने परिवार सहित सेठ प्रानन्द से समय निकाल रहा था।:- 275 . 53
एक बारः की बात है कि नगर के बाहर एक मुनिराज रात्रियोग धारण कर खड़े हुए, प्रभात काल में - सेठ की बड़ी पुत्रवधु गोबर डालने के लिये वहाँ गई
और उसने मुनिराज के ऊपर गोबर डाल दिया और घर वापस आ गई, थोड़े समय के बाद श्रेष्ठी भगवान की पूजा के लिए: उद्यान में गया, रास्ते में उस सेठ की दृष्टि मुनिराज के, ऊपर पड़ी, मुनिराज उपसर्ग-समझकर जैसे के तैसे ही खड़े थे, सेठ ने देखा कि मुनिराज' के ऊपर गोबर डाल रखा है, सेठ । भयभीत हुश्रा,
और उष्ण जल से , मुनिराज़ का शरीर धो डाला, और मनिराज को चैत्यालय में लेकर गया, पूजाभिषेक करने के बाद सेठ अपने घर को आया, मुनिराज श्राहार चर्या के निमित्त नगर में पाये और सेठ ने नवधाभक्तिपूर्वक आहार दिया, मुनिराज वन में वापस चले गये।
कुछ समय के बाद उस सेठ की बड़ी पुत्रवधु रोगाक्रांत होकर मर गई, एक नगर में राजा की स्त्री के गर्भ से उत्पन्न हुई, गर्भ के सहवास से रानी का रूप बिगड़ गया, यह देखकर राजा ने रानी को महल से बाहर रख दिया, तब मन्त्री रानी को अपने घर लेजाकर रानी के नौ मास पूर्ति किये, नव मास बीतने पर रानी ने एक लड़की को जन्म दिया, तब रानी ने उस प्रसूत कन्या को मारने के लिए दासी के हाक