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व्रत कथा कोष
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सामायिक के पश्चात् एकासन करना चाहिए। षष्ठी से लेकर अष्टमी तक तीन दिनों का पूर्ण शीलवत पालन किया जाता है।
शुद्धदशमी व्रत कथा आषाढ़ शुक्ला दशमी के दिन स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहन कर पूजा अभिषेक का द्रव्य साथ में लेकर मन्दिरजी में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर, ईर्यापथ शुद्धि करे, भगवान को साष्टांग नमस्कार करे, फिर अभिषेक पीठ पर धरणेन्द्र पद्मावती सहित पार्श्वनाथ स्थापन कर पंचामृताभिषेक करे, अष्ट द्रव्य से पूजा करना।
___ ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अहं श्रीपाश्वनाथाय धरणेंद्र पद्मावति सहिताय नमः स्वाहा ।
___ इस मन्त्र से १०८ पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, यह व्रत कथा पढ़े, जिनवाणी की पूजा, गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षिणी व क्षेत्रपाल का यथायोग्य सम्मान सत्कार करे, पूजा करे, भगवान के आगे एक पाटे पर पांच पान रखकर पानों पर अक्षत, गंधादि अष्ट द्रव्य रखकर पांच सुपारी रखे, भीगे हुये चने रखे, पद्मावती देवि को हल्दी कुकुम लगावे, फिर एक महा अर्घ्य करके, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती करे, महा अर्घ्य जो हाथ में है उसको भगवान के सामने चढ़ा देवे, भीगे हुए चने की खीर बनाकर (पायस) आधी खीर के पांच भाग करके भगवाग के सामने चढ़ा देवे, आधी खीर स्वयं खाकर एक भुक्ति करे।
___ इसी प्रकार कार्तिक शुक्ला दशमी तक पूजा विधि करते हुए प्रत्येक महिने की दशमी तक व्रत करता जावे, श्रावण की दशमी को अंबील चढ़ा कर स्वयं भी अंबील का भोजन करे, भाद्र शुक्ला दशमी को शुद्ध घर में बनायी हुई मिश्री खीर के साथ चढ़ाकर स्वयं भी आधी बची हुई खीर का भोजन करे, आश्विन शुक्ला दशमी के दिन सेमइ (सावीगे) की खीर बनाकर भगवान को चढ़ावे, आधी अपने एकभुक्त करे, कार्तिक शुक्ल दशमी को पांच प्रकार के मिष्ठान्न बनाकर, बांस की करंडी में भर कर भगवान के सामने मात्र रखे, और सौभाग्यवती स्त्रियों को वह करंडी देवे,