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________________ प्रकार का प्रहार देना । इस ध्यान से समय व्यतीत करना । व्रत कथा कोष [ ५८१ प्रकार उद्यापन करना । चार दिन ब्रह्मचर्य पूर्वक धर्म इस व्रत के योग से गृहशुद्धि, परमगति शुद्धि, ग्रामभूमि शुद्धि, इहगति शुद्धि आत्मशुद्धि होकर शिव गति की प्राप्ति होती है । कथा पुष्करार्ध द्वीप में मन्दर पर्वत के पूर्वभाग में विदेह क्षेत्र है । उसमें मंगलावती देश में मलखेड नगर है । वहां वज्रबाहु राजा वसुन्धरा रानी सहित राज्य करते थे । उनको वज्रजंग पुत्र तथा श्रीमती पुत्रवधु थी । मतिवर मन्त्री तथा उसकी स्त्री मतिवंती, नन्दन कुमार पुरोहित व उनकी पत्नी नंदि, कंपन सेनापति व उसकी भार्या मितवेगी, धनमित्र श्रेष्ठी व उसकी गृहणी धनवती इस प्रकार उनका परिवार था । एक बार राजा सम्पूर्ण परिवार सहित सागरसेन नामक चारण मुनियों के दर्शनों को गये थे । उस समय यह व्रत उनसे लेकर उसका यथाविधि पालन किया । उस योग से वह वज्रबाहु अपने सातवें भव में श्रेयांस राजा हुए। वैसे ही मतिवर मन्त्री भरत चक्रवर्ती हुए । प्रकंपन सेनापति बाहुबली हुए नन्दकुमार थे वे वृषभसेन गणधर हुए । धनमित्र ये अनन्तवीर्य हुए । ये सब दीक्षा लेकर घोर तप करके कर्मक्षय से मोक्ष गये । इस प्रकार इस व्रत का यही माहात्म्य है । विनयसंपन्नता व्रत व कथा आषाढ़ शुक्ला अष्टमी को स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहिने, पूजा अभिषेक का सामान लेकर जिन मन्दिर में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर ईर्यापथ शुद्धि करे, भगवान को साष्टांग नमस्कार करे, अभिषेक पीठ पर जिनेन्द्रप्रभु की मूर्ति यक्ष यक्षि सहित स्थापन कर अभिषेक करे, अष्टद्रव्य से जिनेन्द्र भगवान की पूजा करे, जिनवारणी व गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षि व क्षेत्रपाल का यथायोग्य सम्मान करें । ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रहं परम ब्रह्मणे अनंतानत ज्ञान शक्तये प्रर्हत्परमेष्ठिने नमः स्वाहा । इस मन्त्र से १०८ बार पुष्पों से जाप्य करे, सहस्र नाम पढ़े, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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