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व्रत कथा कोष
इसी क्रम से सात दिन पर्यन्त त्रिकाल पूजा करना चाहिये, सामायिक भी करनी चाहिये, मात्र उस समय पांच वर्णों से चतुष्कोणाकृति पांच मण्डल भूमि पर निकालकर उसके ऊपर एक सेर चाँवल बिछाकर मध्य में एक कलश रखे, उस कलश के ऊपर एक थाली रखे, उस थाली में जिनबिंब की स्थापना करके अष्ट द्रव्य से पूजा करे, मण्डल के चारों कोनों में चार दीपक जलावे, चतुर्दशी के दिन इस व्रत का उद्यापन करे, उस समय चार बार भगवान का दिन में अभिषेक करके, अष्ट द्रव्य से भगवान की पूजा करे, पाँच प्रकार का नैवेद्य बनाकर चढ़ावे, चार निरंजन, चार कलश, ये उपकरण भगवान के आगे रखे, चार वायना करके देव को एक, गुरु को एक, शास्त्र को एक वायना चढ़ावे, स्वयं एक लेवे, मुनिसंघ को प्राहारदान देकर अपने स्वयं पारणा करे, यही इस व्रत की उद्यापन विधि है ।
कथा
राजगृही नगर के विपुलाचल पर्वत पर भगवान महावीर के समवशरण में राजा श्रेणिक ने प्रवेश कर भक्ति से वन्दन किया और मनुष्य के कोठे में जाकर बैठ गये, शांतचित्त से भगवान का उपदेश सुनने के बाद हाथ जोड़कर गौतम स्वामी को कहने लगे कि हे भगवान ! ये जो हमारी अनेक स्त्रियां हैं ये सब हमको कौनसे पुण्य से प्राप्त हुई हैं, तब गौतम गणधर स्वामी कहने लगे कि हे श्रेणिक ! अब मैं इन स्त्रियों के पूर्वभवों को कहता हूँ सो सुनो। यह सब स्त्रियाँ पहले भव में उज्जयनी नगर में एक प्रधान के घर में बहनें थी, पिहिताश्रव मुनिराज से सब ने अलग-अलग व्रत ग्रहण किये थे, व्रत के प्रभाव से स्वर्ग में देवी और वहां से चयकर, अलग-अलग राजाओं के यहां राजपुत्रियां हुई और अब तुम्हारी रानियां हुई हैं। रानी चेलना ने पूर्वभव में विनय संपन्नता व्रत का पालन किया था, विजयावति राणी ने कल्पाभर व्रत को किया था, जयावती रानी ने केवलबोध व्रत को किया था, सुमति रानी ने चारित्रमान, वसुधा रानी ने श्रुतस्कंध, नंदा ने लोक्यसार, लक्ष्मीदेवी ने दुर्गतिनिवारण, मलयावति ने कल्याण तिलक, ललितांगी ने अनंतसुख, सुभद्रा ने समाधिविधान, श्यामादेवी ने भवदुःख निवारण, विमलादेवी ने मोक्षलक्ष्मी निवास व्रत किया था, इस पुण्य का प्रभाव है कि आपकी प्राण वल्लभायें हुई हैं, गौतम स्वामी ने सबको विनय संपन्नता व्रत का प्रभाव कह सुनाया, सबने पुनः