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व्रत कथा कोष
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अन्त तक करते रहना चाहिये, खण्ड नहीं करना चाहिये । व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिये।
-जैन व्रत विधि इसकी दूसरी विधि-यह ब्रत १४४ दिन में पूरा होता है । शुक्ल पक्ष में किसी भी तिथि को व्रत प्रारम्भ करना चाहिये । प्रथम १२ उपवास क्रम से करके १२ एकाशन करना, फिर १२ गौरस से ही भोजन करना, फिर १२ अल्पाहार, १२ एकाशन, १२ केवल मूग खाकर आहार करना, फिर १२ बिना नमक, फिर १२ केवल पानी लेकर, फिर १२ घी छोड़कर आहार लेना, इस प्रकार १४४ दिन का यह व्रत है । भोजन अन्तराय पालकर करना चाहिये । व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिये।
-क्रियाकोष किसनसिंह कृत अथ विषयानंदनिवारण व्रत कथा व्रत विधि-पहले के समान करना चाहिये । अन्तर सिर्फ इतना है कि बैशाख शु० १० के दिन एकाशन करें। ११ के दिन उपवास करें। नव देवता पूजा आराधना, जाप करें, पन्ने मांडे ।
अथ वात्सल्यांग व्रतकथा जाप-पहले के समान करे अन्तर सिर्फ इतना है कि कार्तिक शु० ६ को एकाशन करे ७ के दिन उपवास करे ।
जाप-ॐ ह्रीं अहं वात्सल्यसम्यग्दर्शनांगाय नमः स्वाहा । सात दम्पतियों को खाना खिलाये।
यह सम्यग्दर्शन वात्सल्योग पहले विष्णुकुमार मुनी ने पालन किया था, इसलिए उसकी अच्छी गति हुयी।
विद्यामंडूक व्रत कथा आषाढ़ शुक्ला पंचमी के दिन शुद्ध होकर जिन मन्दिर में जावे, भगवान को नमस्कार करे, पंचपरमेष्ठि भगवान का पंचामृताभिषेक करे, अष्ट द्रव्य से पूजा करे, श्रुत व गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षिणि का अभिषेक करे ।