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________________ व्रत कथा कोष [ ५७१ (५+२+७+२+ +२+६+२+५+२+६+२+७+२+६+२+७+ २+८+२+8+२+५+२+७+२+८+२+७+२+६+६+२+५+२+६+२ इस प्रकार क्रम है। -गोविन्दकृत व्रत निर्णय इसकी और विधि इस प्रकार है इसको रुद्रवसंत व्रत कहते हैं । इसमें ३५ उपवास ६ पारणे होते हैं अर्थात् ४४ दिन का यह व्रत है। इसका क्रम दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा, पांच उपवास एक पारणा, छः उपवास एक पारणा, छः उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा। यह व्रत प्रारम्भ से अंत तक पूरा करना चाहिए। त्रिकाल णमोकार मन्त्र का जाप करना चाहिए । व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिए । -जैन व्रत विधान संग्रह वर्तमान चविंशति व्रत जम्बूद्वीप आदि अढाई द्वीप में सुदर्शन, विजय, अचल, मन्दर और विद्यु. न्माली ये पांच मेरु पर्वत है। इन पर्वतों के दक्षिण और उत्तर में पांच भरत ५ ऐरावत क्षेत्र हैं। वह वर्तमान २४ तीर्थंकर हुए हैं वे सब मिलकर २४० तोर्थकर हुए, उनके नाम पर एक-एक उपवास करना, इसमें मास, पक्ष, तिथि का नियम नहीं है । पूर्ण होने पर उपवास करना चाहिये । -गोविन्दकृत व्रत निर्णय विमानपंक्ति व्रत यह अकाम्य व्रत है। इसमें किसी भी प्रकार की इच्छा नहीं की जाती इसलिये यह अकाम्य व्रत है । स्वर्ग में ६३ पटल हैं इसलिये एक-एक पटल के ४-४ उपवास एक बेला और अन्त में तीन उपवास करके व्रत पूर्ण करना चाहिये । इसका प्रारम्भ कभी-भी कर सकते हैं परन्तु श्रावण सुदि प्रतिपदा को करना अच्छा है । इस दिन शुरू किया तो प्रतिपदा को उपवास द्वितीया को एकाशन तृतीया के उपचास चतुर्थी को उपवास इस क्रम से करना चाहिये । इस प्रकार इस व्रत में ६३४४ - २५२ उपवास ६३ बेले व ३ उपवास अर्थात् एक पटल के कुल ३८१ उपवास होते हैं। ऐसे यह व्रत ६६७ दिन में पूरा होता है। यह व्रत प्रारम्भ से
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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