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________________ ४ ] व्रत कथा कोष व्यवहार में कर्क राशि के सूर्य से लेकर धनु राशि के सूर्य तक दक्षिणायन और मकर से लेकर मिथुन तक सूर्य उत्तरायण कहलाता है । कुछ कार्यों में अयन शुद्धि ग्राह्य समझी जाती है। मांगलिक कार्य प्रायः उत्तरायण में ही संपन्न होते हैं । दो महीने की एक ऋतु होती है। सौर और चान्द्र ये दो ऋतुत्रों के भेद हैं । चैत्र महिने से आरम्भ की जाने वाली गणना चान्द्र ऋतु गणना होती है अर्थात् चैत्र - वैशाख में बसन्त ऋतु, जेष्ठ - प्राषाढ़ में ग्रीष्मऋतु, श्रावण-भाद्रपद में वर्षा ऋतु, आश्विन कार्तिक में शरद् ऋतु, अगहन - पौष में हेमन्त ऋतु, माघ-फाल्गुन शिशिर ऋतु होती 1 सौर ऋतु को गणना - मेष राशि के सूर्य से की जाती है । प्रर्थात् मेषवृषभ राशि के सूर्य में ग्रीष्मऋतु, सिंह- कन्या राशि के सूर्य में वर्षा ऋतु, तुलावृश्चिक राशि के सूर्य में शरदऋतु, धनु मकर राशि के सूर्य में हेमन्त ऋतु और कुम्भ- मीन राशि के सूर्य में शिशिरऋतु होती है । विवाह, प्रतिष्ठा आदि शुभ कार्य सौरऋतु के अनुसार किये जाते हैं । मास की गणना चार प्रकार से की जाती है-सावन, सौर, चान्द्र और नाक्षत्र । तीस दिन का एक सावन मास होता है । सूर्य की एक संक्रान्ति से लेकर अगली संक्रान्ति तक सौरमास माना जाता है । कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक चान्द्रमास माना जाता है । अश्विनी नक्षत्र से लेकर रेवती नक्षत्र तक २१ २७ दिन का होता है । नाक्षत्रमास माना जाता है । यह प्रायः व्यवहार में शुभाशुभ के लिए चान्द्र और सौर मास ही ग्रहण किये जाते हैं। कई प्राचार्यों का मत है कि विवाह और व्रत में सौरमास और पौष्टिक शान्ति में सावनमास, सांवत्सरिक कार्य में चान्द्रमास ग्राह्य माने गये हैं । क्षयमास श्रौर अधिकमास दोनों ही सभी प्रकार के शुभकार्यों के लिए त्याज्य है । हेमाद्रि मत के अनुसार कोई भी शुभकार्य इन दो मासों में नहीं किया जाना चाहिए । परन्तु कुलाद्रि मत में इन दो मासों की अंतिम तिथियां मात्र शुभकार्यों के लिए स्याज्य मानी हैं। तथा इन दोनों का पूर्वार्ध-मध्य भाग ग्राह्य माना है ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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