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व्रत कथा कोष
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सावन वर्ष में ३६० दिन, सौर वर्ष में ३६६ दिन, चान्द्र वर्ष में
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दिन तथा अधिक मास सहित चन्द्र वर्ष में ३८३ दिन २१६२ मुहूर्त और
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नाक्षत्र वर्ष में ३२७६७ दिन होते हैं ।
बार्हस्पत्य वर्ष का प्रारम्भ ई. पू. ३१२८ से हुआ है । यह प्रायः माघ से लेकर माघ तक माना जाता है । इसकी गणना बृहस्पति की राशि से की जाती है । बृहस्पति एक राशि पर जितने दिन रहता है, उतने दिनों का बार्हस्पत्य वर्ष होता है | गणना करने पर प्रायः यह १३ महिनों का होता है । व्यवहार में चान्द्रवर्ष ही ग्रहण किया जाता है । इसका प्रारम्भ चैत्र शुक्ला प्रतिपदा से होता है ।
अयन के संबंध में ज्योतिष शास्त्र में बताया है कि तीन सौर ऋतुओं का एक प्रयन होता है । सूर्य प्रकाश मण्डल में जिस पथ से जाते हुए देखा जाता है, वही भूकक्ष अथवा प्रयन मण्डल है । यह चक्राकार है, परन्तु पुरी तरह से गोल नहीं है, कहीं कहीं थोड़ा वक्र भी है । इसके दक्षिण उत्तर कुछ दूरी तक फैला हुआ एक चक्र है, जो राशि चक्र कहलाता है । राशिचक्र और अयन मण्डल दोनों ३६० अंशों विभक्त हैं । क्योंकि एक वृत्त में चार समकोण होते हैं और प्रत्येक कोण ६० अंश का होता है । इस प्रकार ३६० अंश को १२ राशियो में विभक्त करने पर प्रत्येक राशि का ३० अंश प्रमाण आता है ।
इन विभक्त राशियों के नाम इस प्रकार हैं - मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन ।
राशिचक्र का कल्पित निरक्षवृत्त विषुवरेखा कहलाता है । इस रेखा के उत्तर - दक्षिण २३ अंश २८ कला के अंतर पर दो बिन्दुओं की कल्पना की जाती है । एक बिन्दु उत्तरायणान्त ( उत्तर की ओर जाने की अन्तिम सीमा ) और एक बिन्दु दक्षिणायनान्त ( दक्षिण की ओर जाने की अंतिम सीमा ) है । उन दोनों बिन्दुनों के मध्य जो एक कल्पित रेखा है, उसका नाम प्रयनान्त वृत्त है । सूर्य जिस पथ से उत्तर की ओर जाता है, उसे उत्तरायण और जिस पथ से दक्षिण की ओर जाता हैं, उसे दक्षिणायन कहते हैं ।