SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२ १३ ३५४. व्रत कथा कोष [ ३ सावन वर्ष में ३६० दिन, सौर वर्ष में ३६६ दिन, चान्द्र वर्ष में १८ दिन तथा अधिक मास सहित चन्द्र वर्ष में ३८३ दिन २१६२ मुहूर्त और ५१ नाक्षत्र वर्ष में ३२७६७ दिन होते हैं । बार्हस्पत्य वर्ष का प्रारम्भ ई. पू. ३१२८ से हुआ है । यह प्रायः माघ से लेकर माघ तक माना जाता है । इसकी गणना बृहस्पति की राशि से की जाती है । बृहस्पति एक राशि पर जितने दिन रहता है, उतने दिनों का बार्हस्पत्य वर्ष होता है | गणना करने पर प्रायः यह १३ महिनों का होता है । व्यवहार में चान्द्रवर्ष ही ग्रहण किया जाता है । इसका प्रारम्भ चैत्र शुक्ला प्रतिपदा से होता है । अयन के संबंध में ज्योतिष शास्त्र में बताया है कि तीन सौर ऋतुओं का एक प्रयन होता है । सूर्य प्रकाश मण्डल में जिस पथ से जाते हुए देखा जाता है, वही भूकक्ष अथवा प्रयन मण्डल है । यह चक्राकार है, परन्तु पुरी तरह से गोल नहीं है, कहीं कहीं थोड़ा वक्र भी है । इसके दक्षिण उत्तर कुछ दूरी तक फैला हुआ एक चक्र है, जो राशि चक्र कहलाता है । राशिचक्र और अयन मण्डल दोनों ३६० अंशों विभक्त हैं । क्योंकि एक वृत्त में चार समकोण होते हैं और प्रत्येक कोण ६० अंश का होता है । इस प्रकार ३६० अंश को १२ राशियो में विभक्त करने पर प्रत्येक राशि का ३० अंश प्रमाण आता है । इन विभक्त राशियों के नाम इस प्रकार हैं - मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन । राशिचक्र का कल्पित निरक्षवृत्त विषुवरेखा कहलाता है । इस रेखा के उत्तर - दक्षिण २३ अंश २८ कला के अंतर पर दो बिन्दुओं की कल्पना की जाती है । एक बिन्दु उत्तरायणान्त ( उत्तर की ओर जाने की अन्तिम सीमा ) और एक बिन्दु दक्षिणायनान्त ( दक्षिण की ओर जाने की अंतिम सीमा ) है । उन दोनों बिन्दुनों के मध्य जो एक कल्पित रेखा है, उसका नाम प्रयनान्त वृत्त है । सूर्य जिस पथ से उत्तर की ओर जाता है, उसे उत्तरायण और जिस पथ से दक्षिण की ओर जाता हैं, उसे दक्षिणायन कहते हैं ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy