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व्रत कथा कोष
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पक्ष के दो भेद हैं- कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष प्रायः सभी मांगलिक कार्यों के लिए शुक्लपक्ष ही ग्राह्य माना है । कृष्णपक्ष में पंचमी तिथि के पश्चात पंचकल्याणक प्रतिष्ठा, बेदिप्रतिष्ठा जैसे महान शुभ कार्य नहीं किये जाते हैं ।
प्रतिपदादि तिथियों के नाम प्रसिद्ध हैं । अमावस्या तिथि के प्राठ प्रहरों में पहले प्रहर का नाम सीनीवाली, मध्य के पांच प्रहरों का नाम दर्श और आठवें प्रहर का नाम कुहू है |
किन्हीं - किन्हीं आचार्यों का मत हैं कि तीन घटिका रात्रि शेष रहने के समय से रात्रि के समाप्ति तक सिनीवाली, प्रतिपदा से विद्ध अमावस्या का नाम कुहू, चतुर्दशी से विद्ध अमावस्या का नाम दर्श है ।
सूर्यमण्डल समसूत्र से अपनी कक्षा के समीप में स्थित परन्तु शरवश से पृथक स्थित चन्द्रमण्डल हो तो सिनीवाली, सूर्यमण्डल में आधे चन्द्रमा का प्रवेश हो तो दर्श और जब सूर्यमण्डल और चन्द्रमण्डल समसूत्रों में हों तो कुहू होता है ।
प्रतिपदा सिद्धि देने वाली, द्वितीया कार्य साधन करने वाली, तृतीया प्रारोग्य देने वाली, चतुर्थी हानिकारक, पंचमी शुभप्रद, षष्ठि अशुभ, सप्तमी शुभ, भ्रष्टमी व्याधि नाशक, नवमी मृत्युदायक, दशमी द्रव्यप्रद, एकादशी शुभ, द्वादशी और त्रयोदशी कल्याणप्रद, चतुर्दशी उग्र, पूर्णिमा पुष्टिप्रद एवं अमावस्या अशुभ है ।
तिथि के सम्बन्ध में केशक्सेन तथा महासेन का मत निम्न प्रकार से है –
केषाञ्चित् धर्मघटिकाप्रभं सम्मतमस्ति च ॥ केषाञ्चिविंशतिघटिप्रभं सम्मतमस्ति च ॥ ६॥
केषांचित् केशवादीनां मते करर्णामृत पुराणादिषु धर्मघटिकाप्रभं मतम् । केचिदाहुः - सेनादीनां काष्ठापारीणां मते विंशति घटि मतम् । तेषां ग्रंथेषु सारसंग्रहादिषु तन्मतं तद्वयं दशप्रभं विशतिघटिप्रभं न मूलसंघरत सूरयः समाद्रियन्ते । प्रतस्तद्वयं निर्मलसमं बहुभिः कुलाद्रिमतमाहतमित्यत श्रवछिन्न पारम्पर्यात तदुपदेशबहुसूरिवाक्याच्च सर्वजन सुप्रसिद्धत्वाच्च रसघटिमतं श्रेष्ठमन्यत कल्पनोपेतं मतं, सेनन