SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 627
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६८ ] व्रत कथा कोष चारण मुनिश्वर आये, वनपाल ने राजा को समाचार दिया, समाचार सनते हो राजा को बहुत आनन्द हुअा, सर्व वस्त्राभरण वनपाल को दे दिया और अपने पुर जनपरिजन सहित पैदल उद्यान में गया, भगवान का दर्शन करके मुनिराज को भक्ति से नमोस्तु किया, मुनिराज का धर्मोपदेश सुनने के बाद राजा हाथ जोड़कर विनती करने लगा कि हे स्वामिन् अाप इस राज कुमार के भवप्रपंच को सुनायो, मुनिराज ने राजा को कुमार का जैसा भव दुःख था उसको कह सुनाया, इस कुमार ने पूर्व जन्म में मुनिराज के ऊपर उपसर्ग किया था इसीलिए इसको इतना कष्ट भोगना पड़ा, अगर इसको सुख चाहिये तो वस्तुकल्याण व्रत को करे, व्रत के प्रभाव से कामदेव के समान सुन्दर होकर सर्वसुखों की प्राप्ति होगी। ऐसा कहकर राजा को व्रत का विधान कह सुनाया, आगे उस कुमार ने व्रत को ग्रहण कर यथाशक्ति पालन किया, उद्यापन किया, इस कारण से उसको इस लोक का सुख मिलकर परलोक का सुख भी प्राप्त हुआ। अतः हे भव्य जीवो ! आप भी सुखी होने के लिए इस व्रत का यथाशक्ति पालन करो। वृश्चिकसंक्रमण व्रत कथा मकर संक्रमण की तरह पूर्ववत् पूजा विधान करे, मात्र फरक इतना ही है कि कार्तिक महीने में वृश्चिक संक्रमण आवे तब इस व्रत को करे, पाठ स्वस्तिक बनाकर चन्द्रप्रभ तीर्थंकर की पाराधना करे, मन्त्र जाप्य आदि सब पूर्ववत् करे । कथा भी उसी समान पढ़े। वज्रमध्य व्रत वह व्रत ३८ दिन में पूरा होता है । इसमें २६ उपवास और पारणे होते है । इस व्रत का प्रारम्भ कभी भी कर सकते हैं, पर पूर्ण होने तक अखण्ड करना चाहिये। इसका नियम एक उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा, पांच उपवास एक पारणा, फिर पांच
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy