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________________ श्रत कथा कोष विचार करके प्रयत्न करने लगा, लेकिन मुनिराज आहार के लिए नगर में चले गये, उसने देखा कि मेरा कार्य नहीं हुया तब वह मुनिराज के बैठने के स्थान पर शव डाल कर चला गया। इस पाप से वह सातवें दिन भयंकर कुष्ट से ग्रसित हो गया और महान दु.खित होता हुआ मर गया, मरकर एक जंगल में बहुत बड़ा व्याघ्र हुा । एक दिन शिकारी ने उस ब्याघ्र को मार गिराया । मरकर प्रथम नरक में नारकी होकर उत्पन्न हुआ, वहां की आयु पर्ण कर बकरा होकर उत्पन्न हुआ, वहां से मरकर दूसरे नरक में गया, वहां की आयु भोगकर मरा और सूकर पर्याय में उत्पन्न हुआ है। एक दिन उस सूकर को कुत्ते ने मार डाला, वहां से मरकर तीसरे नरक में गया, वहां का दुःख भोगकर सर्प पर्याय में गया, वहाँ उसको एक गरुड़ ने पकड़कर मार डाला, मरकर चौथे नरक में गया, चौथे नरक में दस सागर की प्रायु पाकर घोर दुखों को सहन करने लगा, आयु समाप्त होने के बाद वहां से मरा और भैंसे की पर्याय में आकर उत्पन्न हुमा, वहां से मरकर पांचवें नरक में सतरह सागर की आयु लेकर जन्मा और घोर दुःख सहन करने लगा, वहां से निकल कर मेढ़क की पर्याय में गया और हाथी के पांव से दबकर मर गया और छठे नरक में जाकर उत्पन्न हो गया, वहां से कौशल देश के अन्दर एक कोशाँबी नगर में ब्राह्मण के घर पाड़ा होकर जन्मा, बरसात काल में होने वाले कीचड़ में एक दिन फंस गया और उसके ऊपर बिजली पड़ गयी और वह पाड़ा मरणासन्न हो गया। वहां एक दयाबुद्धि को धारण करने वाले मुनिराज ने उसके कान में पंचनमस्कार मन्त्र दिया, मन्त्र को शांति से सुनकर मरने से वह पुष्कलावती देश के पुण्डरिकिणी नगर में विद्य त्प्रभ राजा की विमलावती पटरानी के गर्भ से पुत्र होकर पैदा हुमा, जन्मते समय ही उसके हाथ, पांव, लूले, लंगड़े और शरीर कुबड़ा था, राजा ने उसको देखा, देखते ही राजा का मन बहुत ही खेद-खिन्न हुआ-राजा ने उसका नामकरण भी नहीं किया, बड़ा हुया तो भी उसको बोलना नहीं आता था, इसलिए लोग उसको चंबु कहकर बुलाने लगे। एक दिन उस नगर के उद्यान में जिनचैत्यालय का दर्शन करने के लिए दो
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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