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________________ ५६६ ] व्रत कथा कोष और पूर्णिमा को भी पूर्वोक्त विधि से पूजा करे, मात्र क्रमशः माला तीन, दो, एक और खाने के पदार्थ भी क्रमशः घटाते जाना, तीन पदार्थ, २ पदार्थ, एक पदार्थ, आठ दिनों तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करे, प्रतिपदा को पूर्वानुसार पूजा करके एकासन करे । इस विधि यह व्रत आठ वर्ष तक करना चाहिये, अन्त में उद्यापन करके, एक धातु के ऊपर श्रुतस्कन्ध की स्थापना करके, प्रतिष्ठा करनी चाहिये, फिर श्रुतस्कन्ध की पूजा करना, बारह बांस की टोकरी मंगाकर उसमें नाना प्रकार की मिठाई और वायना द्रव्य, गन्ध, अक्षत, फूल, फल, खाने का पान डालकर वायना बांधे, उन तैयार की हुई १२ टोकरियों में से एक देव, एक शास्त्र, एक गुरू, एक पद्मावती, रोहिणी और व्रत करने वाले, व्रत कथा पढ़ने वाले, आर्यिका और सौभाग्यवती इन सब को एक-२ वायना देना चाहिये, चौबीस मुनिराज को पुस्तकें, पिच्छी, कमण्डलु देवे, आर्यिका माताजी को प्रहारदान देवे । इस व्रत के प्रभाव से व्रतिक को भोगोपभोग सुख की प्राप्ति होकर नियम से मोक्ष की प्राप्ति होती है । कथा इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में प्रार्य खण्ड है, वहां एक मगध देश है, उस मगध देश में राजग्रह नाम का एक सुन्दर नगर हैं । उस नगर में पहले एक राजा श्रेणिक राज्य करते थे, श्रेणिक की रानी का नाम चेलना था, राजा श्रेणिक का एक धनमित्र नाम का सेठ था, उस सेठ की धनवति नाम की गुणवान पत्नी थी, उस सेठ का एक पुत्र नंदिमित्र था, वो सप्तव्यसन में लिप्त था । आगे एक दिन उस नगर के उद्यान में रहने वाले सहस्रकूट चैत्यालय में दर्शन के लिए एक पिहिताश्रव नाम के महामुनिश्वर अपने संघ सहित पधारे, नन्दी - मित्र अपने मित्रों सहित वहां आया, मुनि समुदाय को देखकर बहुत ही क्रोध से व कामाहंकार से संतप्त होकर मुनिराज को मारकर वहां डालकर चला जाऊं, ऐसा
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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