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प्रत कथा कोष
श्रीवीरजयंती प्रत चैत्र शुक्ल तेरस दिन जान, उपजे वीरनाथ भगवान ।
सुरपति प्राय मेरु पधराय, कियो अभिषेक महासुखदाय ।।
भावार्थ :-चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन कुन्दनपुर नगर में सिद्धार्थ राजा के घर त्रिशलादेवी की कूख से श्री महावीर स्वामी ने जन्म लिया। इसी पवित्र दिन सौधर्म इन्द्र ने आकर भगवान को मेरु पर्वत पर ले जाकर अभिषेक किया था। इस दिन उपवास करे । धर्मप्रभावना के कार्य करे । धर्मध्यान में सारा दिन व्यतीत करे।
वस्तुकल्यारण व्रत कथा प्राषाढ़, कातिक, फाल्गुन इन महीनों में आने वाले कोई भी एक अष्टान्हिका की अष्टमी के दिन प्रतिकों को स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहन कर पूजा द्रव्य अभिषेक का सामान लेकर मन्दिर में जाना चाहिए । तीन प्रदक्षिणा देकर जिनेन्द्र को नमस्कार करे, सिंहासन पर जिनेन्द्र प्रभु की प्रतिमा स्थापन करके पंचामृताभिषेक करे, अष्ट द्रव्य से पूजा करे।
ॐ ह्रीं अष्टोत्तर शतसहस्रनाम सहित श्री जिनेन्द्राय नमः स्वाहा ।
सफेद पूष्पों से १०८ बार इस मन्त्र से जाप करे, श्रुत व गुरु की पूजा करना, यक्षयक्षो व क्षेत्रपाल की पूजा करना, रणमोकार मन्त्र का १०८ बार जप करना, शास्त्रस्वाध्याय करके व्रत कथा कोष को पढ़ना, भगवान के आगे अखण्ड दीप (नंदादीप) लगाना, महाअर्घ्य के द्रव्यों को थाली में लेकर तीन प्रदक्षिणा देना, उस दिन ब्रह्मचर्य व्रत पालन करना, एक ही वस्तु को खाकर उस दिन एकासन करना, नवमो को पूर्वोक्त प्रमाण से पूजा करना, दो माला णमोकार मन्त्र की फेरे, दो वस्तु खाकर रहे, दशमी के दिन पहले के समान पूजा करता हुमा तोन माला णमोकार मन्त्र की फेरे, तीन पदार्थ कोई भी खाकर रहे।
इसी प्रकार एकादशी पौर द्वादशी के दिन भी पूजा करता हुमा, चार-२ वस्तु खाकर रहे और णमोकार मन्त्र की माला भी चार-२ फेरे । त्रयोदशी, चतुर्दशी