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________________ ५५२ ] व्रत कथा कोष अर्थात् धर्म से क्या नहीं होता है इसलिये हे भव्य प्राणी ! आत्म-कल्याण करना चाहिये जिससे इस भव में और परभव में सुख मिलेगा। रसाञ्जली व्रत ------ इस व्रत का प्रारम्भ वैशाख सुदि प्रतिपदा से करना चाहिए। उस दिन सिर्फ तीन अञ्जुली पानी पीना उसके बाद कुछ भी नहीं खाना । प्रत्येक महिने की सुदि व वदि तृतीया को तीन अञ्जुली पानी लेना । व्रत के दिन इक्षुरस से जिनाभिषेक करना चाहिये । व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिए, यदि शक्ति न हो तो व्रत दूना करे। रैदेतल व्रत जिस महिने में शक्ल पक्ष में तीन शनिवार प्रायें उस महिने में यह व्रत करना चाहिए । उस पक्ष में पहिले शनिवार के पहले दिन एकाशन करना, शनिवार से तीन उपवास करना, दूसरे शनिवार को और तीसरे शनिवार को भी ऐसे ही करना चाहिये, यह व्रत एक वर्ष करना चाहिये। इसकी दूसरी विधि लघु व्रत करके पहचानी जाती है । शुक्ल पक्ष के पहले शनिवार व अन्तिम शनिवार को एकाशन (एकभुक्ती) करना । बीच वाले शनिवार को उपवास करना, इस प्रकार यह व्रत करना चाहिये । पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिये । नहीं किया तो व्रत दूना करना चाहिये । रूप चतुर्दशी व्रत श्रावण सुदि चतुर्दशी रूप चतुर्दशी है । इस दिन प्रोषधोपवास करना चाहिए उपवास के दिन भगवान ऋषभनाथजी का अभिषेक करके और सब पूजा करके बाद में आदिनाथजी की पूजा करनी चाहिये । “ॐ ह्रीं श्री वृषभनाथाय नमः" इस मंत्र का जाप करना चाहिये। व्रत तिथि निर्णय इसकी दूसरी विधि-भाद्र सुदि १८ को कुमारिकाओं को यह व्रत करना
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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