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________________ व्रत कथा कोष [ ५५३ चाहिए। जिन मंदिर में जाकर तीन प्रदक्षिणा देना चाहिए फिर भगवान का अभिषेक व प्रष्टद्रव्य से पूजा करनी चाहिये, उस दिन उपवास करना चाहिये । उपवास प्रोषधपूर्वक होना चाहिए । ५ वर्ष तक यह व्रत करना चाहिये । नहीं किया तो व्रत दूना करना चाहिए । रूपाष्टमी व्रत भाद्रपद सुदि श्रष्टमी को प्रोषधोपवास करना चाहिए। यह व्रत आठ वर्ष तक करना चाहिए । पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिये, नहीं तो व्रत दूना करना चाहिए | रुक्मिणी व्रत भाद्रपद सुदि ७ को एकाशन करके सुदि ८ को उपवास करना, नवमी को एकाशन करना दशमी को उपवास, एकादशी को एकाशन, द्वादशी को उपवास, त्रयोदशी को एकाशन, चतुर्दशी को उपवास, पौणिमा को एकाशन इस प्रकार हर साल चार उपवास चार एकाशन करना चाहिये । इस प्रकार आठ वर्ष तक यह व्रत करना चाहिए | व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिये । नहीं किया तो व्रत दूना करना चाहिये । यह व्रत रुक्मिणी ने लक्ष्मीपती ब्राह्मणी के जन्म में किया था । उसके बाद बह रुक्मिणी के रूप में जन्मी । फिर अपने पुत्र पद्युम्नकुमार के साथ जिन दीक्षा ली, अंत में मोक्ष गयी । - किशनसिंहकृत क्रिया कोष रस परित्याग व्रत की विधि व कथा श्रावण कृष्ण प्रतिपदा के दिन स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहिने अभिषेक व पूजा द्रव्यों को हाथ में लेकर जिन मंदिर में जावे, ईर्यापथ शुद्धि करता हुआ मंदिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, जिनेन्द्र भगवान को साष्टांग नमस्कार करे, श्री अभिषेक पीठ पर जिनेन्द्र भगवान की स्थापना कर पंचामृताभिषेक करे, अष्ट द्रव्य से भगवान की पूजा
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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