SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 604
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्रत कथा कोष [ ५४५ है, अत: इस व्रत में उदयकाल में छः घटी का नियम प्रायः मान्य होता है । हां, कभी-कभी एक-दो घटी प्रमाण उदय में रोहिणी के रहने पर भी व्रत किया जाता है । दिने कृत े च छिन्न वाऽछिन्ने तत्र च निश्चयः । क्षेत्रकालादिमर्यादोल्लंङघनं तत्र दूषरणम् ।। श्रन्यदपि षोडशकारणवारिदमालारत्नत्रयादिव्रतानां पूर्णाभिषवे प्रतिपत्तिभिरेषा नापरा ग्राह्येति पूर्वोक्तवचनात् । श्रपरा द्वितीया ग्राह्यति अनवस्थाज्ञा भङगसंकरादयो दोषाः भवन्तीति श्रश्रदेवमतमित्येष रोहिणी व्रत निर्णयः । अर्थ :- तिथिक्षय या तिथि-वृद्धि होने पर व्रत करने के लिए देशकाल की मर्यादा का विचार अवश्य किया जाता है । जो देश-काल की मर्यादा का विचार नहीं करता है, उसके व्रतों में दूषण प्रा जाता है । अन्य षोड़शकारण, मेघमाला, रत्नत्रय आदि व्रतों के पूर्ण अभिषेक के लिए प्रतिपदा तिथि ग्रहरण की गयी है, अन्य तिथि नहीं । यदि अन्य द्वितीया तिथि ग्रहरण की जाय तो अनवस्था प्राज्ञाभंग, संकर आदि दोष आ जायेंगे, इस प्रकार अभ्रदेव का मत है । रोहिणी व्रत के निर्णय के लिए भी देश काल की मर्यादा का विचार करना चाहिए । इस प्रकार रोहिणी व्रत का निर्णय समाप्त हुआ । विवेचन :- रोहिणी व्रत रोहिणी नक्षत्र को किया जाता है । जिस दिन पञ्चांग में रोहिणी छः घटी या इससे अधिक प्रमाण हो उस दिन व्रत करने का विधान है । यदि कदाचित् छः घटी प्रमाण रोहिणी नक्षत्र न मिले तो एकाध घटी प्रमाण मिलने पर भी व्रत किया जा सकता है । जब रोहिणी नक्षत्र का प्रभाव हो तो कृत्तिका के उपरान्त और मृगशिर से पूर्व रोहिणी व्रत करना चाहिए । जब दो दिन रोहिणी नक्षत्र हो तो जिस दिन पूर्ण नक्षत्र हो उस दिन व्रत करना तथा अगले दिन यदि छः घटी से ऊपर या छः घटी प्रमाण ही रोहिणी नक्षत्र हो तो अगले दिन भी व्रत किया जायेगा । इससे कम प्रमाण होने पर व्रत की पारणा की जायेगी ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy