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व्रत कथा कोष
रोहिणी व्रत यह व्रत अधिकतर औरतें अपने सौभाग्य की वृद्धि और प्रीति के लिये करती हैं। उपवास का फल कहते हुए योगीन्द्र देव ने कहा है जिनेन्द्र भगवन्त को दीप चढ़ाने से मोह नष्ट होता है । उसी प्रकार रोहिणी के व्रत से शोक दारिद्र आदि का नाश होता है । रोहिणी नक्षत्र प्रत्येक महिने में प्राता है । जिस दिन नक्षत्र न हो उस दिन उपवास करने से उसका फल नहीं होता है। उपवास के दिन चार प्रकार का आहार का त्याग कर मन्दिर में जाकर धर्म ध्यान पूर्वक १६ प्रहर बिताये। वहां सामायिक, स्वाध्याय, पूजन अभिषेक इस में समय निकाले ।
___ यदि रोहिणी नक्षत्र एक या दो घटक हो या यदि कृतिका नक्षत्र की समाप्ति पर रोहिणी नक्षत्र हो तो भी अथवा सूर्योदय के समय नक्षत्र आता हो तो उस दिन करना । व्रत के उपवास के दिन त्रिकाल ॐ ह्रीं श्री चंद्रप्रभु जिनेन्द्राय नमः इस मन्त्र का १०५ बार जाप करे । यदि उपवास की शक्ति न हो तो संयम से अल्प भोजन करे या कांजीहार या भात की मांड लेना । व्रत के दिन पंचाणक्त का पालन करना चाहिए । उद्यापन करना चाहिये उद्यापन के दिन एक नयी मिट्टी का कलश ले उसको चंदन आदि से लेप करना चाहिए ऊपर सफेद वस्त्र से ढके उस पर पुष्पमाला डालनी उसके मुह पर पीतल की थाली रखनी उसके ऊपर ऋषि मंडल निकालना और उस दिन पूजा करना पूजा की प्रक्रिया रत्नत्रयावली में बतायी है चतुर्विंशति की पूजा करना। उसमें जलयात्रा, अभिषेक, सकलीकरण अगन्यास, मंगलाष्टक, स्वस्तिवाचन करना । उसके बाद ७२ पूजा नित्य पूजा के बाद करे अर्घ में चाँदी के स्वस्तिक नारियल सुपारी चढ़ानी उद्यापन में पांच बर्तन झालर घंटा आदि देना चाहिए।
कथा मगध देश में राजगृह नामक एक नगर था। वहां श्रेणिक राजा राज्य करता था। उनका पुत्र वारिषेण था । एक दिन विपुलाचल पर महावीर भगवान का समोशरण पाया था। उस समय राजा श्रेणिक ने रोहणी व्रत किसने और क्यों किया था ऐसा प्रश्न पूछा ?
तब भगवान महावीर की दिव्य ध्वनि खिरी