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व्रत कथा कोष
___ इति चामुण्डरायपुराणे रोहिण्योत्सवनिर्वाणकात्तिकाभिषेकोत्सवे यात्रोत्सवे वस्तुत्सवे च विधानम् ।।
अर्थ :-जिस तीन मुहूर्त वाली तिथि को प्राप्त कर सूर्य अस्त होता है, उस तिथि को व्रत के ज्ञाता धर्मादि कार्यों में पूर्ण मानते हैं । इस प्रकार चामुण्डराय ने कहा है, चामुण्डरायपुराण में और भी कहा गया है
व्रतों के दिनों में आदि, मध्य या अन्त में तिथि का ह्रास हो तो मुख्य दिन को लेकर व्रत विधान करना चाहिए । इस प्रकार श्रेष्ठ प्राचार्यों ने कहा है।
आदि में तिथि-क्षय हो या मध्य में तिथि-क्षय हो तो एक दिन पहले व्रत करना चाहिए। अन्त में तिथि-क्षय होने पर यह विधि नहीं की जाती है । कहा भी है
___ दो-तीन या चार दिन के व्रतों में किसी तिथि के क्षय होने पर, पूर्व दिन से व्रत करने चाहिए तथा पूर्व दिन से ही व्रत विधि सम्पन्न की जाती है ।
यदि दो-तीन या चार दिन के व्रतों में किसी तिथि की वृद्धि हो जाय तो, व्रत संख्यक दिनों में ही व्रत विधि पूर्ण करनी चाहिए । परन्तु प्राचार्यों ने यह विधान किसी रोगी, दुःखी व्यक्ति के लिए किया है । स्वस्थ और सुखी व्यक्ति को तिथि वृद्धि होने पर एक दिन अधिक व्रत करना चाहिए ।
इस प्रकार चामुण्डरायपुराणमें रोहिणी-उत्सव, निर्वाण-कात्तिक उत्सव, यात्रा-उत्सव, वस्तु-उत्सव आदि के लिए विधान किया है ।
विवेचन :-रोहिणी व्रत के लिए उदयकाल में रोहिणी नक्षत्र छः घटी अथवा इससे अल्प प्रमाण भी हो तो उसी दिन रोहिणी व्रत करना चाहिए। यदि उदयकाल में रोहिणी नक्षत्र का अभाव हो तो एक दिन पहले व्रत किया जायेगा। यों तो सभी व्रतों के लिए यही नियम है कि तिथि क्षय में एक दिन पूर्व से व्रत किया जाता है और तिथि-वृद्धि में एक दिन अधिक व्रत करने का विधान है। चामुण्डरायपुराण के अनुसार रोगी, वृद्ध और असमर्थ व्यक्तियों को तिथि वृद्धि होने पर नियत दिन प्रमाण ही व्रत करना चाहिए । रोहिणी व्रत सिर्फ एक दिन का होता