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व्रत कथा कोष
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शिरा के पूर्व का जितना समय है, वही व्रत-काल है । रोहिणी व्रत यों तो ऐश्वर्य, सुख प्रादि की वृद्धि के लिए स्त्री-पुरुष दोनों ही करते हैं, पर विशेषतः इस व्रत को स्त्रियां करती हैं । इस व्रत के करने से स्त्रियों को सौभाग्य, सन्तान, ऐश्वर्य, स्वास्थ्य
आदि अनेक फलों की प्राप्ति होती है। इस व्रत में उपवास के दिन तीनों समय 'ॐ ह्रीं श्रींचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय नमः' मन्त्र का जाप करना चाहिए।
___ जिनको उपवास करने की शक्ति न हो वे संयम ग्रहण कर अल्पभोजन करें, या कांजी अथवा मांड-भात लें। व्रत के दिन पञ्चाणु व्रतों का पालन करना, कषाय और विकथाओं को छोड़ना आवश्यक है । मृगशिर नक्षत्र में पारणा करना एवं कृत्तिका में व्रत की धारणा करने से व्रत विधि पूर्ण मानी जाती है ।
अवाप्य यामस्तमुपंति सूर्यस्तिथि मुहूर्ततयवाहिनी च ।
धर्मेषु कार्येषु वदन्ति पूर्णा तिथि व्रतज्ञानधरा मुनीशाः ।। इति चामुण्डरायवाक्यं तथा च तत् पुराणेप्येवमुक्तम् व्रतानां दिनेशाः दिनेशं प्रहोणे किलादौ च मध्येऽवसाने तथैव । तथा मुख्यघस्त्रं ग्रहीत्वा प्रकार्य विधानं व्रतानां समुक्तं मुनीशैः ।।
___ प्रादितः दिनक्षयेषु प्रथममेवमाचरेत् मध्यतः दिनक्षयेषु प्रथममेवमाचरेत्; अन्ततः दिनक्षयेषु अयं विधिः न विधीयते । उक्तं च
तिथीनां क्षये द्वित्रितुर्यादिकानां
न वै तदवतानां तिथिश्चेत्प्रयाति । दिनकेऽवशिष्टे व्रतं कार्यमादौ
गृहीत्वां दिनं तत्प्रपूर्णां विधि च ॥१॥ तिथीनां सुवृद्धौ द्वितुर्यादिकानां
व्रतानां दिनेष्वेव कार्य विधानम् । यदा कोऽपि मर्यो सरोगः सदुःखः
तदा तेषु कार्य विधान बुधोक्तम् ।।२।।