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________________ ५३६ ] व्रत कथा कोष सार, चौपाई पार्श्वनाथ - रविव्रत सेवत नवनिधि होंइ अपार । नारि पुरुष जो मन वच करें, सकल श्रापदा छिन में हरें ॥ बहुप्रकार जो संकट सहे, कुष्ट व्याधि से पीडित रहे । सो सुमरे श्री पार्श्वजिनेन्द्र, सब प्रकार पावे श्रानन्द || पुत्र कलत्र विहूंड़ो होय, बहुरि मन दे रविव्रत पाले सोय, बांझ जो नारी होय । पारसनाथ सहाई होय || छलो मन्दमति विद्याहीन, जे नर सुमरें चक्षु विहोन । चलत विदेश नाम जो लेहि, ताको पार्श्वनाथ फल दहि || पुण्यकथा यह पूरन भई, भविजन को सुखदाई कही । भविपंकज विकसावन भान, समदर्शी सर्वज्ञ सुजान ॥ मोहमल्ल जिनने वश कियो, रागद्वेषतजि संयम लियो । अजर अमर निर्भय ह्र रह्यो, सो जिनदेव सभी को जयो || देय दृष्टि में रचो पुरान, उठी बुद्धि में किया बखान । हीन अधिक जो प्रक्षर होंय, बहुरि संवारो गुणधर लोय ॥ अग्रवाल तिन कियो बखान, मूढ़ा जननी तियरण थान । गरग गोत मल्ल को पूत, 'भाऊ' कवि सुभक्ति संजूत || कर्मक्षय कारण मति भई, तब यह धर्मकथा वरनई । मन धरि 'भाउ' सुने जो कोय, सो नर स्वर्ग -देवता होय ॥ ॥ इति रविब्रत कथा समाप्त || श्रथ रौद्रध्याननिवारण व्रतकथा व्रत विधि :-- पहले के समान करे । अन्तर सिर्फ इतना है कि वैशाख कृष्णा १२ के दिन एकाशन करे । १३ के दिन उपवास व पूजा आराधना मंत्र जाप आदि करे ! पत्ते मांडे ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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