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व्रत कथा कोष
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रत्नशोक व्रत कथा
आषाढ़ शुक्ल तृतीया के दिन शुद्ध होकर मंदिर में जावे, तीन प्रदक्षिणा लगाकर भगवान को नमस्कार करे, रत्नत्रय मूर्ति का पंचामृताभिषेक करे, प्रष्ट द्रव्य से पूजा करे, गणधर की पूजा करे, शास्त्र व गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षिणि की. जा करे ।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रहं श्रर मल्लि मुनिसुव्रत् लोर्थंकरेभ्यो यक्षयक्षि सहितेभ्योनमः : स्वाहा ।
इस मंत्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाय्य करे, सणमोकार मंत्र का १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, एक थाली में अर्घ्य लेकर मंदिर की तीन प्रदक्षिणा लगावै, मंगल आरती उतारे, तीन प्रकार का नैवेद्य चढ़ावे, तीन मुनिराज को दान देवे, स्वयं के भोजन में तीन वस्तु ही से एकासन करे । इस प्रकार से नव पूजा व्रत पूर्ण करके, इस व्रत को शुक्ल पक्ष व कृष्ण पक्ष की तृतीया को व्रत व पूजा करे । प्राषाढ़ की दो और श्रावरण की दो भाद्र की दो, आश्विन महिने की दो और आठ कार्तिक शु० तृतीया, इस प्रकार नौ तृतोया को व्रत करे, अंत में उद्यापन करे, उस समय रत्नत्रय की मूर्ति बनाकर प्रतिष्ठा करवावे, दानादि देवे ।
मुनि संघों को आहारः
कथा
कनकपुर नाम के एक नगर में जयंधर नाम का राजा अपनी पृथ्वीदेवी नामक रानी के साथ सुख से राज्य करता था । पृथ्वीदेवी ने इस व्रत का पालन किया था, व्रत के प्रभाव से नागकुमार नामक पुण्यशाली पुत्र उत्पन्न हुआ, नागकुमार ने आगे जिनदीक्षा ग्रहण कर स्वर्ग और मोक्ष को प्राप्त किया ।
रामनवमी व्रत कथा
चैत्र शुक्ल पंचमी से नवमी तक प्रतिदिन जिनेन्द्र भगवान का पंचामृताभिषेक करे, अष्ट द्रव्य से पूजा करे, जिनवाणी और गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षिणी व क्षेत्रपाल की पूजा करे ।