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________________ व्रत कथा कोष बहुरी पदम ने उत्तर दियो, यामे स्वामि हम क्या कियो । मेरे देखो कौन प्रमोद, ना हम कृत कारित अनुमोद ।। १७० ।। याते होन हार सोई होय पूरब लिखो न मेटे कोय । मोहि कलंक बन्दो मुनिराय, जुक्ति होय सो किजे काय ।। १७१ ।। तुम [ ५११ ब तुम सकल योग मुनिराय, जुगत होय सो किजे काज । पै प्रागै भाषौ कहा तुम सब समरथ कारन अब महा ।।१७२ ।। जहां मरिण की है पूरन ज्योति, तहं दीप की किम गिनती होत । चन्द्र कला षोडस है जहां, तारा गरण को पूछे कहां ।। १७३ ।। जहाँ स्वामी तुम हव प्रत्यक्ष, उलटन चाही उलट उदधि तुम भरो, तल से तुम स्वामी सब गुण गंभीर, तुम श्रागे मे तुमरी इच्छा होय सो करो, यामे मोको मत श्रादरौ ।। १७५ ।। क्या बनिये वीर । अपार, कर बीना लीनी सो तुरन्त करत वेद धुनि परम गयो यज्ञ शाला मे देख प्रिय बहु श्रादर हाथ जोरि बलि बिनवे तुम धुनि सुनि में हौ संतुष्ट, पलटन मेरू समर्थ । पृथ्वी ऊपर करो ।।१७४ | यह सुनि कोपो विष्णु कुमार, रिद्धि बामन रूप विप्र को करो, विक्रिया कर संचार । माला कंठ जनेऊ धरौ ।। १७६ ।। नाना भांति बजावत जंत । चारो वेद अंग विस्तार ।। १७७ ।। सोय, मानो ब्रह्मो श्रयो कोय | कियो, सबके ऊंचे बैठक दियो ।। १७८ ॥ सोई, मांगो प्रिय जो इच्छा होइ । जो मांगौ सो देहौ प्रभीष्ट ।। १७६ ।। मोको कछु नहि चाहिये श्रबै । मं श्रतथि द्विज बावन अंग, जाने सकल बेद बेदांग ॥। १८० ॥ तब मुनि कह्यो पुर्ण है सबै जो राजा बहु दान करेहु, तीन हाथ मोहि प्रथ्वी देहु । सहां कुटी में लेहुं बनाय, धर्म ध्यान के हेत सुभाय ।।१८१।।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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