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________________ ५१२ ] व्रत कथा कोष तब बलि बोलो मांगो कहा, मन वंछित कछु मांगो महा । याको महाराज बहु एहु, तुमको शक्ति होय सो देहु ।।१८२॥ "दोहा".-.-.. बलि बोलो सुनि विप्र गुरु, मनमति क्रोध करेहु । पृथ्वी है चहु दिस परि, जित भावे तित लेहु ॥१८३।। देहु म.हि संकल्प करि, मुख सो स्वस्ति बुलाय । तीन लोक मुनि साखि दे, तब मे ले हो जाय ॥१८४॥ कियो संकल्प जो तास को, स्वस्त कहत प्रकाश । तबहि विष्णु कुमार मुनि, लागौं जाय प्रकाश ॥१८५।। प्रथम चरण धर मेरू पं, दुजो मानुषोत्तर पे जाय । तीजे को पृथ्वी नही, तब बलि रहयो शंकाय ।।१८६।। "छन्द जोगी रासा" कंप्यो शेष घरनि सब कंप्यो कंप्यो उदधि गम्भीरा। मेरू प्रादि गिरिवर सब कंप्यो कंप्यो नेक धरत नहि धीरा ॥ व्योम भानु शशि सरगरण, कंप्यो तारे नखत समेता। देव असुर दानवे कंपे, किन्नर यज्ञ समेता ॥१८७।। तीन भवन मे शंका भई, जब मुनि देह बढ़ाई । देख रूप भय भीत भये, सब कौन विक्रिया प्रायो । चढि चढि देव विमाननि ऊपर दशो दिशाते धाये । जहां विष्णु मुनि छोम सूठाहे, तहां दौरि सब आये ॥१८८।। क्षमा क्षमा कोजै मुनि नायक तुम सम को है। तुम ही अन्तर जामी स्वामी शिव गामी पद सो है ।। सब देवनि मिलि बलि को बांध्यो डारयो मनि के पाई । अब तुम राख लेहु शरणागति हो त्रिभुवन के राई ॥१८॥
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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