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व्रत कथा कोष
तिन साधो षट खण्ड अपार, कह विभूत वरणौ तिस सार । शास्त्र पुराण सुनो जिन कोय, उनकी महिमा जाने सोय ।। १५८ ।। सब तज जिन दिक्षा श्रादरी, केवल ज्ञान उपार्जन करी । समोशरण तिनके तहं भये, धर्म चलाय मुकत को गये ।। १५ ।। तिनके कुल मे हम हैं वीर, दया धर्म पालन गुण धीर । हमरे कुल ऐसी किन करि, जैसी भैया तुम चित्त धरी ॥ १६० ॥
मुनि उपसर्ग कहा किन कियो, महा पाप अपने सर लियो । कैसे करी छूटेगे कर्म, कियो वीर तुम महा धर्म ।।१६१ । । इष्टनि पाले दुष्टनि हमे ऐसे राज नीति मे भने । मनुष होम किन गंथनि कहयो, कह जानि तुम इह संग्रहयो ।।१६२ ॥ साधुनि सो इतनो संताप महा कष्ट कीनो भव पाप । तुमरे राज इतनो दुख होय, तुम्हे लाज आवै नहि कोय ।। १६३ ।।
प्रजहु शान्ति करो तुम जाव, लेहु मुनिन को जीव बचाय । इतनो जस तुम अब लेव, इतनी मांगे हमको देव ।। १६४ ॥ ॥
इतनी सुनकर बौलो राय, अब मैं कहा करो मुनिराय । सात दिनो को अपनो राज, दोनो बली बाह्मान के काज ।। १६५ ।।
बचन हार दोनो मे जाय, अब कैसे करि मांगौ ताय ! कहा कहो वासो मै जाय. हारियो वचन रहयो घर श्राय ॥ १६६ ॥ ताते हमे कहा है कोय, अपनो कियो पाई है सोय । हम क्या उनको दियो लगाय, की तुम उनको मारौ जाय ।। १६७॥१ ताको हमे कहां है पाप, करम किये को पावेगो प्राप । जो करता सो भोक्ता होय, यह जग मे भाषै सब कोय ।। १६८ ।।
तब मुनिराज कहयो सुनि वीर, तेरी मति नांहि है थोर ।
कृत कारित मोदन है एक, यामै नाहि कछु रहयो विवेक । १६६ ।।