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व्रत कथा कोष
रुन वरन ब्रह्मा की देह, सेत वरन तन रुद्र सनेह । विष्णु कृष्ण तन श्याम जु लहै, येक मूर्ति कैसे करि कहै ॥ ७० ॥ चम्पापुर मे ब्रह्म भये, राजगृही में महेसुर जये । मथुरा माहिं कृष्ण अवतरै, येक मूर्ति कैसे संचरे ॥ ७१ ॥
ब्रह्मा वाहन हंस स्वरूप, महा रुद्र सो वृषभ अनूप । कृष्ण गरुड वाहन जग माहि, येक मूर्ति कैसे ठहराय ||७२ ||
सोम बंस ब्रह्मा प्रवतरे, सुरज बन्स रुद्र उर धरे । "दु बन्सी भये कृष्ण मुरारी, येक मूर्ति कैसे करि झारि ॥ ७३ ॥
ब्रह्म दण्ड कमलको फूल, महा रुद्र मंडी तिरसूल । शंख चक्र धर कृष्ण जु भये, येक मूर्ति कैसे करि ठये ॥ ७४ ॥ ॥ कत जुग में ब्रह्मा जु भये, त्रेता माहि रुद्र पर भये । द्वापर मे जु कृष्ण अवतरं येक मूर्ति कैसे संचरे ।। ७५ ।। ब्रम्हा ब्रम्हचर्य व्रत घरे, महा रुद्र गौरी संग वरं । कृष्ण के गोपी सोलह हजार, येक मूर्ति कैसे संसार ॥ ७६ ॥ यह को उत्तर दीर्जे मोहिं, तब में पंडित जाने तोहि । ना तर तागा धरऊ उतार, को तुम बात जु कहौ विचार ||७७ ॥ तब चारों बोले रिष खाय, यह को उत्तर देह प्राय । अब नृप संघ कहा हम कहै, तातै मौन बरत ही गहै ॥ ७८ ॥
दोहा
स्याद बाद यह बहुत किय। ए सब भये प्रबाध ॥
जो गूंगे सो झूठ है ।
जो सांचों सौ सांच ॥७६॥
ज्ञान गर्भ द्विज को गयौ । भूप दियो मुस्काय ॥
बोल कहु श्रावै नहीं । रहे गरब मुख द्वार ||८०||