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________________ व्रत कथा कोष ताही को जोती ले जाय, तसु सो पूछो तुमरो को लगे, मेरे मन को संशय भगै । महिमा को कहै बनाय ||५८ || रु गंगा को माता कहै, ताकी महिमा यहि विधि लहै । रैन करें त्रिया प्रसंग, भोरी कांध धोंवै मधि गंग ॥५६ ।। यहि न्हाये तिरि जाहि, मन वच क्रम सो संसय नाहि । जो जल के न्हाये शिव होय, काहे को वांछे तप कोय ।। ६० ।। मद के भाजन लावे कोइ, सो बिंच गंग प्रछाले सोई । वह पवित्र का है नहि वामै दोष कहां रहि गयौ ॥ ६१ ॥ तब मोसौ कछु और सुनेहु । यह सब बचन कह्यौ है किन्है ||६२|| भयौ, यहि को मौको उत्तर देहु, अब राजा तुम पूछो इन्हे कौन शास्त्र मे है जो येह, सो मोहि ग्रंथ दिखावो केह । काहू रिषि की साधी देहि, ताकी हम परमान करेहि ||६३ || एक बात औौरो जो कहै, सो नरपति नीकै करि लहै । ब्रह्मा विष्णु रुद्र त्रय येह, तिनकी कहै येक है देह ||६४ || यह निश्चय कैसे करि ठहराय, सो मोसी सब देहिं बताय । कहं ब्रह्मा कहं कृष्ण मुरारि, कंह रुद्र गोरि पर नारी ।। ६५ ।। ब्रह्म तात प्रजापति प्राहि, पद्मावति माता है ताहि । तत रेवती ताको जयौ, येक मूर्ति कैसे करि भयो || ६६ ॥ वासुदेव के भये कृष्ण मुरारी, माता विदित देव को थारि । जनम नक्षत्र रोहिनि भयौ, येक मूर्ति कैसे करि ठयौ ॥६७॥ उवला के सुत भये महेश, वाइस को माता उरतेस । मुल नक्षत्र जना है ताहि, येक मूर्ति कैसे करि श्राहि ॥ ६८ ॥ चारि वन्दन ब्रह्मा के भये, लोउन तीन रूद्र के यहै । भये चतुर्भुज विष्णु स्वरूप, येक मूर्ति कैसे करि भूप ॥ ६६ ॥ + ५०१
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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