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________________ व्रत कथा कोष [ ४८ पारणा, सात उपवास एक पारणा, आठ उपवास एक पारणा, नव उपवास एक पारणा, इस प्रकार क्रम से ५५ उपवास और १० पारणे करना । इस प्रकार यह व्रत दस बार करना । अर्थात् ५५० उपवास और १०० पार होते हैं, यह व्रत ६५० दिन में पूर्ण होगा । व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिए । - गोविन्दकविकृत व्रत निर्णय यशोनव नवमी तप व्रत उपवास १/२/३/४/५ / ६ / ७ / ८ / ६ ( अर्थात् एक उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा ) इस प्रकार 8 बार अर्थात् ४०५ उपवास व ८१ पारणे । इस प्रकार ४८६ दिन में यह व्रत पूर्ण होता है । यशोनव नववार व्रत एक उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा, पांच उपवास एक पारणा, छः उपवास एक पारणा, सात उपवास एक पारणा, प्राठ उपवास एक पारणा, नव उपवास एक पारणा, इस प्रकार ४५ उपवास व ८ पार करना प्रर्थात् ५४ दिन में यह व्रत पूर्ण होगा । इस प्रकार नव बार यह व्रत क्रम से करना जिससे ४०५ दिन उपवास और ८१ पारणे प्रायेंगे क्रम टूटना नहीं चाहिए, व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करना चाहिए नहीं किया तो व्रत दूना करना चाहिए । श्रथ यथाख्यातचारित्र व्रत कथा व्रत विधि :- पहले के समान सब विधि करे । ग्रन्तर केवल इतना है कि आषाढ़ कृ. १ के दिन एकाशन करे, २ के दिन उपवास करे । पूजा वगैरह पहले के समान करे, पांच मुनिराज को दान करे, दम्पति को भोजन करावे, शास्त्र आदि दान करे । कथा पहले परमानन्दपुर नगरी में परिपूर्णचन्द राजा पूर्णचंद्राननी अपनी महारानी के साथ रहता था । उसका पुत्र चंद्रवदन उसकी स्त्री चंद्रवंदना, मंत्री, पुरोहित,
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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