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________________ ४८८ ] व्रत कथा कोष एक दिन नगर के उद्यान में वासुपूज्य तीर्थंकर का समवशरण आया था। राजा यह सुन परिवार सहित दर्शन को गये थे। पूजा वंदना आदि करने के बाद धर्मोंपदेश सुना । उसके बाद राजा ने अपने भव पूछे । अपना पूर्वभव सुनकर वह मघवाचक्रवर्ती व्रत स्वीकार कर अपने नगर में वापस आये । घर आकर उसने विधिपूर्वक यह व्रत किया । जिससे संसार सुख भोग करने से वैराग्य हो गया । जिससे अपने पुत्र को राज्य देकर जिनदीक्षा धारण की। घोर तपश्चर्या करने से वे मध्य ग्रैवेयक में अहमिन्द्र हये । वहां उन्होंने २७ सागरोपम दिव्य सुख भोगकर धर्मनाथ तीर्थंकर के समय में सुकौशल देश के बीच साकेत नगरी में जन्म लिया । यही मघव चक्रवर्ती हुआ । पिता ने इन्हें राज्य दिया और जिनदीक्षा धारण की। एक दिन उस नगर के उद्यान में अभयघोष नामक महामुनि अपनी गधकुटी सहित पाये । यह सुन मघव चक्रवर्ती दर्शन को गये। वहां वन्दना पूजा आदि कर मनुष्यों के कोठे में जाकर बैठ गये । वहां धर्मोपदेश सुन वैराग्य हो गया जिससे उन्होंने अपने पुत्र प्रियामित्र को राज्य देकर अभयघोष मुनि से जिनदीक्षा ली। घोर तपश्चरण के प्रभाव से कर्मक्षय कर मोक्ष गये । ____मध्यकल्याणक व्रत मध्यकल्याणक जु तेरा दिन प्रादि अन्त द्वय प्रोषध गिना । एकल चार कंजिका तीन, रूक्ष जु अनागार द्वय दून ।। -वर्धमान पुराण भावार्थ :-यह व्रत १३ दिन में पूर्ण होता है। यथा-प्रथम एक उपवास, दूसरे चार दिन एकलठाना, तीसरे ३ कंजिकाहार, चौथे २ रूक्ष भोजन, पांचवें २ दिन मुनि वृत्ति से आहार, छठवें १ उपवास । इस प्रकार १३ दिन करे । त्रिकाल नमस्कार मन्त्र का जाप करे । व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन करे । यशोदशक दशवार व्रत एक उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा, पांच उपवास एक पारणा, छः उपवास एक
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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