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________________ ४६० ] व्रत कथा कोष श्रेष्ठी, सेनापति सारा परिवार सुख से रहता था। एक बार उन्होंने चन्द्रसागर मुनि से व्रत लिया। उसका यथाविधि पालन किया सर्व सुख को प्राप्त किया । अनुक्रम से मोक्ष गये। रत्नावली व्रत की विधि कनकावली चैवमेव रत्नावली, तस्यामाश्विन शुक्ले तृतीया, पञ्चमी, अष्टमी, कातिककृष्णे द्वितीया, पञ्चमी, अष्टमी एवं एतद्दिवसेषु सर्वेषु द्विसप्ततिरूपवासाः कार्याः । प्रत्येक मासे षडुपवासाः भवन्ति । इयं द्वादशमासभवा रत्नावली । सावधिका मासिका रत्नावली न भवति । ____ अर्थ :-कनकावली व्रत के समान रत्नावली व्रत भी करना चाहिए । इस में भी आश्विन शुक्ला तृतीया, पंचमी, अष्टमी तथा कार्तिक कृष्ण द्वितोया, पञ्चमी और अष्टमी इस प्रकार प्रत्येक महीने में छः उपवास करने चाहिए । बारह महीनों में कुल ७२ उपवास उपर्युक्त तिथियों में ही करने पड़ते हैं। यह द्वादश मास वाली रत्नावली हैं । सावधिक मासिक रत्नावली व्रत नहीं होता है। विवेचन :-कनकावली के समान रत्नावली व्रत में भी मास गणना अमावस्या से ग्रहण की गयी है । अमान्त से लेकर दूसरे अमान्त तक एक मास माना जाता है। व्रत का प्रारम्भ आश्विन के अमान्त के पश्चात् किया जाता है तथा कनकावली और रत्नावली दोनों व्रतों के लिए वर्षगणना आश्विन के अमान्त से ग्रहण की जाती है । रत्नावली व्रत मासिक नहीं होता है, वार्षिक ही किया जाता है। प्रत्येक महीने में उपर्युक्त तिथियों में छः उपवास होते हैं, इस प्रकार एक वर्ष में कुल ७२ उपवास हो जाते हैं । उपवास के दिन अभिषेक पूजन आदि कार्य पूर्ववत् ही किये जाते हैं । ___ॐ ह्रीं त्रिकालसम्बन्धि चतुविंशतितीर्थ करेभ्यो नमः । इस मन्त्र का जाप इन दोनों व्रतों में उपवास के दिन करना चाहिए। रत्नावली व्रत कथा (१) इस व्रत के ७२ उपवास एक वर्ष में करने का है प्रत्येक महिने की दोनों पक्षों को तृतीया, पंचमी, अष्टमी को प्रोषधोपवास करने का है, इस व्रत का प्रारम्भ श्रावण महीने से ही होता है, इस प्रकार ७२ उपवास एक ही वर्ष में करने का है।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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