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________________ व्रत कथा कोष [ ४८५ इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, महाअर्घ्य चढ़ावे, उस दिन उपवास करे, ब्रह्मचर्यपूर्वक रहे, दूसरे दिन पूजा व दान करके पारणा करे । इस प्रकार पांच मंगलवार इस व्रत को करके अंत में कार्तिक अष्टान्हिका में व्रत का उद्यापन करे, उस समय चौबीस तीर्थंकर की प्रतिमा का अभिषेक करे, प्रत्येक तीर्थंकर की अलग-अलग पूजा करे, चतुर्विध संघ को दान देवे । कथा इस व्रत को पहले सूर्यप्रभ नामक राजा ने यथाविधि पालन किया था, उनकोस वर्ग सुख प्राप्त होकर नियम से मोक्ष सुख की प्राप्ति हुई । राजा श्रेणिक पौर रानी चेलना की कथा पढ़े। अथ (मिगी पारल) त्रिमुष्टि लाजा व्रत कथा आषाढ़ शुक्ल ८ अष्टमी के दिन व्रत धारण करने वाला व्यक्ति स्नानकर शुद्ध कपड़ा पहनकर, अभिषेक पूजा का द्रव्य, लाहा शुद्ध अपने घर में भूनकर बनावे, और जिनमन्दिर जी में जावे, ईर्यापथ शुद्धि करके मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाते हुये, भगवान को नमस्कार करे, अभिषेक पीठ पर जिनेन्द्र भगवान को स्थापन कर पंचामृताभिषेक करे, अष्टद्रव्य से भगवान की पूजा करे, जिनबाणी और गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षि क्षेत्रपाल को भी पूजा करे, भगवान के आगे कोई भी धान्य का लाह्या लाजा (धानी) तीन मुट्ठी फुज रूप में चढ़ावे, ऊपर पुष्प रखे, भक्ति से साष्टांग नमस्कार करे। ॐ ह्रीं अर्हद्भ्यो नमः स्वाहा। इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करें, जिन सहस्र नाम पढ़े, णमोकार मन्त्र की एक माला जपे, व्रत कथा पढ़े, एक महाअर्घ्य हाथ में लेकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर मंगल आरती उतारे, अर्घ्य चढ़ा देवे, मध्य में आने वाली अष्टमी चतुर्दशी के दिन उपवास करे, नहीं तो एकाशन करे, इसी क्रम से प्रतिदिन कार्तिक शुक्ला पूरिणमा पर्यन्त पूजा करे, अन्त में पूर्णिमा के दिन उद्यापन करे, उस समय यथाशक्ति महाभिषेक करके तीन
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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